उत्तर प्रदेश में बिजली उपभोक्ताओं के लिए नया सड़क हादसा बन गया है। नए कनेक्शन पर स्मार्ट प्रीपेड मीटर अनिवार्य किए जाने और इसके एवज में 6016 रुपये वसूलने का मामला अब नियामक आयोग (UPERC) के रडार पर है।
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केंद्र सरकार की आरडीएसएस योजना का उद्देश्य था — मौजूदा बिजली ढांचे को मजबूत करना, बकाया कम करना और गैर-विद्युतीकृत क्षेत्रों को बिजली देना। लेकिन यूपी पावर कार्पोरेशन ने योजना का तंत्रिकाओं को उल्टा कर दिया। नए कनेक्शन धारकों से अनुचित शुल्क वसूला जाने लगा, जबकि केंद्र की योजना में इसका कोई प्रावधान नहीं था।
अब नियामक ने 15 दिन में जवाब मांगा है, और सवाल साफ है —
क्या मीटर बाजार दर से ज्यादा महंगे खरीदे गए?
क्या यूपी में टेंडर में ₹9,000 करोड़ का अतिरिक्त खर्च उपभोक्ताओं के पैसे से भरा गया?
क्या कार्पोरेशन ने मुनाफे के लिए जनता पर बोझ डाला?
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जानकारों का कहना है कि यह मामला सिर्फ रुपये वसूलने का नहीं, बल्कि पूरी बिजली वितरण नीति की साख पर सवाल खड़ा करने वाला है। उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश वर्मा ने चेतावनी दी:
“नवीनतम मीटर लगाना सही है, लेकिन जनता से महंगी दर वसूलना पूरी योजना को बदनाम करता है।”
स्थिति और भी गंभीर है क्योंकि यूपी पावर कार्पोरेशन ने 18 हजार करोड़ के बजाए 27 हजार करोड़ का टेंडर पास किया, यानी 9 हजार करोड़ का अंतर, जो अब नियामक की जांच में फँस सकता है।
उपभोक्ताओं के लिए यह सीधा संदेश है:
“स्मार्ट मीटर के लिए अतिरिक्त खर्च की बिन मांगे वसूली, अब सिर्फ विवाद का कारण नहीं, बल्कि बड़े पैमाने पर सार्वजनिक गुस्से का कारण बन सकता है।”
अब सबकी निगाहें इस पर हैं कि पावर कार्पोरेशन नियामक आयोग को क्या जवाब देता है और क्या जनता को राहत मिलेगी या मीटर की कीमतों पर राजनीतिक और कानूनी तूफान उठने वाला है।
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