उत्तर प्रदेश में एक बार फिर वही पुरानी कहानी सामने है-भ्रष्टाचार का आरोप, बड़ा अफसर, FIR, जांच एजेंसियां और… चुप्पी। इस बार नाम है IAS अभिषेक प्रकाश का। वही अफसर जो कभी निवेशकों के लिए “सिंगल विंडो” सिस्टम का चेहरा थे, आज रिश्वत और कमीशन के आरोपों में घिरे हैं। फर्क बस इतना है कि अब खिड़की पर खड़ा निवेशक नहीं, बल्कि सवालों की लंबी लाइन है।
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सोलर प्रोजेक्ट या कमीशन प्रोजेक्ट?
आरोप है कि सोलर प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने के बदले कारोबारी से कमीशन मांगा गया। यही नहीं, Invest UP के CEO रहते हुए भी उद्योगों को हरी झंडी देने के नाम पर अवैध मांग की गई। सरकार ने कार्रवाई करते हुए 20 मार्च 2025 को निलंबन तो कर दिया, FIR भी दर्ज हो गई, लेकिन असली सवाल यहीं से शुरू होता है।
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FIR के बाद अफसर कहां है?
विजिलेंस और पुलिस पूछताछ करना चाहती है, लेकिन अफसर अब तक सामने नहीं आए। कुछ मीडिया इसे “लापता” कह रही है, सरकार कहती है- न लापता, न गायब।
तो फिर सवाल सीधा है-अगर अफसर मौजूद हैं, तो जांच से दूरी क्यों?
संपत्ति की परछाईं, परिजनों के नाम पर फाइलें
जांच सिर्फ रिश्वत तक सीमित नहीं है। आय से अधिक संपत्ति, सरकारी जमीन में अनियमितता, और बेनामी संपत्ति—ये सारे शब्द अब जांच फाइलों में दर्ज हैं। खबरें बताती हैं कि बरेली इंटरनेशनल सिटी समेत कई संपत्तियां परिजनों के नाम खरीदी गईं। देश में सवाल पूछने की आज़ादी है, तो सवाल यह भी है—क्या यह संयोग है या सिस्टम का पुराना खेल?
DM, LDA, Invest UP… और हर जगह सवाल
बरेली से लखनऊ तक DM की कुर्सी,
LDA और Invest UP जैसे ताकतवर पद-
अभिषेक प्रकाश प्रशासन के उन चेहरों में रहे, जिनके फैसले करोड़ों की दिशा तय करते हैं।
आज वही फैसले जांच एजेंसियों के रडार पर हैं। यानी जिन फाइलों पर कभी “Approved” की मुहर लगी, अब उन पर “Probe Underway” लिखा है। सिस्टम की सबसे कमजोर कड़ी कौन? यह मामला सिर्फ एक IAS अधिकारी का नहीं है। यह उस सिस्टम का है, जहां अफसर सस्पेंड हो जाता है, FIR हो जाती है, जांच बैठ जाती है लेकिन जवाबदेही धुंधली हो जाती है।
अगर आरोप सही हैं-तो सख्त सजा क्यों नहीं? अगर आरोप गलत हैं-तो अफसर जांच से भाग क्यों रहा है?
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अंत में एक सीधा सवाल
देश निवेश आकर्षित करने की बात करता है, सोलर एनर्जी का सपना दिखाता है, लेकिन जब निवेशक को फाइल नहीं, कमीशन दिखे, तो भरोसा कैसे बने? अभिषेक प्रकाश का मामला सिर्फ एक नाम नहीं है, यह उस व्यवस्था का आईना है- जहां फाइलें चलती हैं, लेकिन जवाब नहीं। और जब तक जवाब नहीं मिलेंगे, तब तक यह सवाल जिंदा रहेगा! भ्रष्टाचार पकड़ा गया है या सिर्फ संभाला गया है?
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