उत्तर प्रदेश में भ्रष्टाचार का ऐसा ‘एक्स-रे’ हुआ है, जिसमें पूरे स्वास्थ्य तंत्र की हड्डियां तक हिल गई हैं।
2016 की भर्ती में फर्जी टेक्निशन नियुक्त कराए गए। FIR भी हो गई, मगर अब पुलिस दस्तावेज मांग रही है और स्वास्थ्य महानिदेशालय ऐसे पर्दानशीनी कर रहा है, मानो यही उसका असली काम हो।
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FIR का ड्रामा, कागज़ों की गायबगी!
8 सितंबर को DG (पैरामेडिकल) डॉ. रंजना खरे ने FIR दर्ज करवा दी।
लेकिन 15 सितंबर तक पुलिस को नियुक्ति पत्र, जॉइनिंग लेटर, वेतन भुगतान की फाइलें नहीं मिलीं।
यानी FIR करके पब्लिक को दिखा दिया – “देखो, हम काम कर रहे हैं” – मगर असली काम यानी कागज़ देने की बारी आई तो महकमे की कलम की स्याही ही सूख गई!
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अर्पित नाम का ‘जादुई टेक्निशन’
बलरामपुर, फर्रुखाबाद, रामपुर, बांदा, अमरोहा और शामली जिलों में एक ही नाम अर्पित से एक्स-रे टेक्निशन नौकरी कर रहे थे।
मानो यूपी का स्वास्थ्य विभाग नौकरी नहीं, जादूगर पैदा कर रहा हो!
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सिंडीकेट का जाल
सूत्रों के मुताबिक यह कोई साधारण लापरवाही नहीं।
महानिदेशालय से लेकर सीएमओ दफ्तरों तक एक सिंडीकेट चला, जिसने भर्ती को अपनी दुकान बना लिया।
अब यही सिंडीकेट दस्तावेज अटकाकर आरोपियों को भागने का समय दे रहा है।
कहावत है – “साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे” – मगर यहां हालात उलटे हैं: साँप को भगाने की पूरी तैयारी है और लाठी खुद तोड़ दी गई है।
DG डॉ. आरपीएस सुमन की ‘महामौन’
भर्ती से जुड़े सभी दस्तावेज डॉ. आरपीएस सुमन को सौंपे जा चुके थे।
फिर पुलिस को देने में देरी क्यों?
उनकी चुप्पी अब रहस्य नहीं, रहस्योद्घाटन बन गई है।
लगता है, जितनी तेजी से फर्जी नियुक्तियां हुईं, उतनी ही धीमी गति से जांच आगे बढ़ेगी!
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चुभते सवाल
FIR का तमाशा क्यों, जब दस्तावेज ही नहीं देने?
क्या महकमा आरोपियों को बचाने का बीमा एजेंट बन गया है?
क्या यूपी में नौकरी योग्यता से मिलती है या ‘सिंडीकेट की कृपा’ से?
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