बस्‍ती सीएमओ साहब, आखिर आप कितना नीचे गिरेंगे?” बस्ती में फूटा जनाक्रोश, तहसील दिवस बना भ्रष्टाचार के खिलाफ जनमंच

लखनऊ/बस्‍ती, NIA संवाददाता।

यह कोई फिल्मी डायलॉग नहीं था, बल्कि एक टूटी हुई आत्मा की सच्ची चीख थी क‍ि “साहब, इतना गिरा हुआ सीएमओ और डिप्टी सीएमओ ए.के. चौधरी नहीं देखा! मन करता है, फांसी लगा लूं!”

बस्‍ती ज‍िले के तहसील दिवस की बैठक में यह आवाज गूंजी तो पूरा परिसर सन्न रह गया। यह चीख थी शिकायतकर्ता उमेश गोस्वामी की — उस आम आदमी की, जो तीन महीने से न्याय की सीढ़ियों पर माथा रगड़ रहा है, लेकिन सीएमओ और उनकी मंडली के भ्रष्टाचार के सामने उसकी हर कोशिश ठंडी पड़ जाती है।

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उमेश गोस्वामी ने सीडीओ के सामने कहा क‍ि “अगर मेरा शपथपत्र झूठा है, तो मुझे जेल भेज दो, लेकिन पहले इन दोनों अफसरों की जेबें टटोलो, जिनमें गरीबों की दवा और अस्पताल का बजट भरा पड़ा है!”

सीडीओ ने जब सीएमओ से कुदरहा पीएचसी में तैनात अपनी ननद सुमन चौधरी और भाभी सुनीता चौधरी के संविदा नियुक्ति मामले में पूछा तो जवाब आया क‍ि “शिकायत फर्जी है, पर्ची फर्जी है!”

सीडीओ ने तड़पकर कहा क‍ि “बिना जांच के कैसे फर्जी बता दिया? रिपोर्ट भेजिए!”

मगर सवाल यही है, किसकी रिपोर्ट? किसके खिलाफ?
क्योंकि बस्ती का आमजन अब जान गया है कि सीएमओ दफ्तर में हर फाइल की चाबी रिश्वत की तिजोरी में रखी है।

लोगों को याद है

कप्तानगंज के एमओआईसी डॉ. अनूप चौधरी का मामला हो या मेडीवर्ल्ड और ओमबीर फार्मेसी का, या डॉ. गौड़ की फाइल — हर बार आरोप यही कि सीएमओ और उनकी टीम बिक गई।

अब सवाल सिर्फ यही नहीं कि सीएमओ कितना गिरा, सवाल यह भी है कि प्रशासन कब तक गिरते हुए लोगों को उठाने का नाटक करता रहेगा?

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जिला मुख्यालय में अब चर्चा सिर्फ यही

“सीएमओ और डिप्टी सीएमओ को बचाने में कौन-कौन लगा है?
और आखिर यह दोनों सरकारी कुर्सी पर बैठे हैं या निजी दुकान चला रहे हैं?”

तीखे सवाल जो बस्ती पूछ रही है

क्या बस्ती में सरकारी नियुक्तियां अब ‘घर की खेती’ बन चुकी हैं?

क्या सीएमओ का दफ्तर अब ‘कैश ऑन डिलीवरी’ सिस्टम पर चल रहा है?

और क्या योगी सरकार की ‘शून्य सहिष्णुता नीति’ इन अफसरों तक पहुंच भी पाई है?

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