उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में इंसानियत को शर्मसार करने वाली घटना हुई है। काकोरी इलाके में 60 साल के एक दलित बुजुर्ग को एक व्यक्ति ने सरेआम अपमानित किया। आरोप है कि बुजुर्ग को ज़मीन चाटने और पेशाब चाटने तक पर मजबूर किया गया।
घटना मंदिर के पास की, आरोपी गिरफ्तार
यह वारदात 20 अक्टूबर की बताई जा रही है। शीतला मंदिर के पास बैठे दलित बुजुर्ग रामपाल (60) पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने वहां पेशाब किया। इसी बात पर आरोपी स्वामीकांत उर्फ पम्मू भड़क गया। गुस्से में उसने न सिर्फ़ रामपाल को जातिसूचक गालियां दीं, बल्कि उन्हें ज़मीन चाटने को भी कहा।
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पुलिस ने बताया कि आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया है। जांच जारी है।
“सरकार संवेदनशील है, दोषी नहीं बचेंगे” — ब्रजेश पाठक
मामले ने सरकार को भी हिला दिया है। डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने कहा, “यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण घटना है। जांच शुरू कर दी गई है। दोषियों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई होगी।”
उन्होंने यह भी कहा कि सरकार दलितों, गरीबों और वंचितों के साथ मजबूती से खड़ी है।
राजनीति में बवाल: विपक्ष ने BJP और RSS पर साधा निशाना
घटना के बाद विपक्ष ने सरकार को घेरा।
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चंद्रशेखर आज़ाद ने कहा, “यह सिर्फ अपराध नहीं, जातिवादी मानसिकता का नंगा प्रदर्शन है।” उन्होंने SC/ST Act के तहत कार्रवाई और पीड़ित को सुरक्षा व मुआवजा देने की मांग की।
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अखिलेश यादव ने लिखा, “किसी की भूल का मतलब यह नहीं कि उसे अमानवीय सज़ा दी जाए। परिवर्तन ही परिवर्तन लाएगा।”
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कांग्रेस ने ‘एक्स’ पर लिखा, “आरएसएस कार्यकर्ता ने बुजुर्ग को पेशाब चाटने पर मजबूर किया। यह मानवता पर कलंक है। भाजपा राज में दलित होना जुर्म बन गया है।”
हालांकि, पुलिस ने स्पष्ट किया है कि आरोपी का आरएसएस से कोई संबंध नहीं है।
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पीड़ित परिवार की व्यथा — ‘दादा को सांस की तकलीफ है, गलती से पेशाब निकल गया था’
रामपाल के पोते मुकेश ने बताया, “दादा को सांस की तकलीफ है। उन्हें खांसी आई और गलती से पेशाब निकल गया। पम्मू ने उन्हें जातिसूचक शब्द कहे और पेशाब चाटने को कहा। दादा डर गए और उन्होंने वही किया जो उसने कहा।”
मुकेश के मुताबिक, मंदिर उस जगह से करीब 40 मीटर दूर है जहां ये घटना हुई। रामपाल ने रात में परिवार को कुछ नहीं बताया, सुबह जाकर पूरी बात कही, तब रिपोर्ट लिखाई गई।
समाज पर सवाल: कब मिटेगा जातिवाद का जहर?
यह घटना सिर्फ कानून-व्यवस्था का मुद्दा नहीं, बल्कि समाज की सोच पर भी चोट है। सवाल यह है कि 21वीं सदी के भारत में भी क्या किसी की जाति उसकी इज़्जत तय करेगी?
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