किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (KGMU) में सोमवार को देश का पहला कफ क्लिनिक शुरू किया गया। यह पहल बेनाड्रिल बनाने वाली कंपनी केंव्यू और एसोसिएशन ऑफ फिजिशियंस ऑफ इंडिया (API) की साझेदारी में की गई है।
इसका मकसद डॉक्टरों को खांसी के वैज्ञानिक मूल्यांकन और सही इलाज की ट्रेनिंग देना है।
एक साल में देशभर में खुलेंगे 10 कफ सेंटर
इस प्रोजेक्ट के तहत पूरे देश में 10 ‘कफ सेंटर ऑफ एक्सीलेंस’ स्थापित किए जाएंगे और 1,000 से ज्यादा डॉक्टरों को प्रशिक्षित किया जाएगा।
यहां डॉक्टरों को केस-आधारित प्रशिक्षण दिया जाएगा, जिसमें खांसी की पहचान, आवाज़ से निदान और लक्षणों के हिसाब से सही इलाज पर फोकस रहेगा।
हर दिन बढ़ रहे हैं खांसी और सांस की तकलीफ वाले मरीज
केजीएमयू के डॉक्टरों के मुताबिक, अब रोजाना 5 से ज्यादा मरीज सिर्फ लंबे समय से चल रही खांसी या सांस की परेशानी लेकर आ रहे हैं।
पहले यह संख्या 2-3 के बीच होती थी।
सर्दी, प्रदूषण, धुंध और खराब वायु गुणवत्ता के कारण हालात और बिगड़ रहे हैं।
गांवों में भी धूम्रपान न करने वालों में COPD (क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज) के केस तेजी से बढ़े हैं।
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‘कफ कैटेगराइजेशन टूल’ से होगा इलाज तय
कफ क्लिनिक की नींव ‘कफ कैटेगराइजेशन टूल’ पर रखी गई है।
यह टूल 2024 में जर्नल ऑफ द एसोसिएशन ऑफ फिजिशियंस ऑफ इंडिया (JAPI) में प्रकाशित हुआ था।
इसके जरिए डॉक्टर खांसी को तीन श्रेणियों में बांट सकते हैं —
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वेट कफ (गिली खांसी)
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ड्राई कफ (सूखी खांसी)
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मल्टी-सिम्पटम कफ (मिश्रित लक्षण वाली खांसी)
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इससे डॉक्टर रेड-फ्लैग संकेतों और ट्रिगर्स की पहचान कर सही दवा और इलाज तय कर पाएंगे।
सबसे बड़ी बात — इससे बिना वजह दी जाने वाली दवाओं का इस्तेमाल कम होगा।
डॉ. सूर्या कांत बोले – “अब खांसी को हल्के में नहीं लिया जा सकता”
केजीएमयू के श्वसन रोग विभाग के प्रमुख प्रो. डॉ. सूर्या कांत त्रिपाठी ने कहा –
“लखनऊ की बदलती रेस्पिरेटरी हेल्थ प्रोफाइल भारत की तस्वीर दिखाती है।
ओपीडी में खांसी और सांस के मरीज दोगुने हो गए हैं।
अब सिर्फ लक्षणों का इलाज नहीं, बल्कि उनका वैज्ञानिक मूल्यांकन ज़रूरी है।
कफ क्लिनिक डॉक्टरों को साक्ष्य-आधारित प्रशिक्षण देने का बड़ा कदम है।”
केंव्यू इंडिया के प्रशांत शिंदे बोले – “हर खांसी को ब्रॉन्कोडायलेटर की जरूरत नहीं”
केंव्यू इंडिया के बिजनेस यूनिट हेड (सेल्फ केयर) प्रशांत शिंदे ने कहा –
“हम डॉक्टरों के साथ मिलकर कफ के पीछे के विज्ञान को आगे बढ़ा रहे हैं।
हर खांसी को ब्रॉन्कोडायलेटर की जरूरत नहीं होती।
हमारा फोकस ऐसे फॉर्मूलेशन पर है जो सरल हों और लक्षित परिणाम दें।
इस साझेदारी के जरिए हम डॉक्टरों को केस-आधारित लर्निंग और आधुनिक चिकित्सा दृष्टिकोण से जोड़ना चाहते हैं।”यह भी पढ़ें: सेल्फ डिफेंस से महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रहीं ज्योति सिंह, मिशन शक्ति 5.0 की पहचान बनीं
क्यों जरूरी है यह पहल
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लखनऊ और आसपास के जिलों में रेस्पिरेटरी बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं
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हर उम्र के लोगों में खांसी आम लक्षण बन चुकी है
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डॉक्टरों को सटीक निदान और इलाज के लिए वैज्ञानिक प्रशिक्षण की जरूरत
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सर्दी, प्रदूषण और खराब हवा से बढ़ रही फेफड़ों की बीमारियां
सीधी बात
खांसी अब सिर्फ “सर्दी-जुकाम” का लक्षण नहीं रही —
यह रेस्पिरेटरी रोगों की शुरुआती चेतावनी है।
ऐसे में कफ क्लिनिक जैसी पहलें न केवल इलाज को सटीक बनाएंगी, बल्कि देश में रेस्पिरेटरी हेल्थ के नए मानक तय करेंगी।
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