नकली चावल का धंधा और असली कानून की नींद – अन्नपूर्ति ब्रांड की आड़ में फरेब का कारोबार

बस्ती/महराजगंज, एनआईए संवाददाता। 

जब मेहनत से कमाया गया नाम कोई और अपनी जेब भरने के लिए चुरा ले — तो यह सिर्फ धोखाधड़ी नहीं, बल्कि व्यवस्था के कानों पर पड़े पर्दे की पोल भी खोलता है। अन्नपूर्ति ब्रांड के नाम पर घटिया चावल बेचने का खेल महराजगंज जिले के सिंदुरिया क्षेत्र में खुला है। पुलिस ने यहां से 10,931 बोरे बरामद किए हैं — यानी जालसाजी का अंबार। सवाल यह है कि जब तक यह कारोबार फलता-फूलता रहा, तब तक निगरानी कहां थी?

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ऋषि अग्रवाल, जो मेमर्स बाला जी चावल मिल्स प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक हैं, ने जब अपने ट्रेडमार्क “अन्नपूर्ति” के दुरुपयोग की शिकायत की, तब कहीं जाकर प्रशासन की आंख खुली। उनके मुताबिक, यह ब्रांड ट्रेडमार्क अधिनियम 1999 के तहत पंजीकृत है, और प्रदेश के कई जिलों में इसकी पहचान है। लेकिन कोई स्थानीय मिल मालिक उसी नाम पर घटिया माल बाजार में उतारकर ब्रांड की साख और उपभोक्ता का भरोसा दोनों लूट रहा था।

छापे में मिले हजारों बोरे इस बात का सबूत हैं कि यह कोई छोटी चोरी नहीं थी — यह व्यवस्थित ठगी का नेटवर्क था। सोचिए, अगर शिकायत न होती, तो ऐसे “अन्नपूर्ति” नाम के फर्जी बोरे कितने घरों तक पहुंच चुके होते!

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अब पुलिस ने कॉपीराइट एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया है, लेकिन यह शुरुआत है — सवाल यह है कि क्या इस फरेब के असली सूत्रधार तक कानून पहुंचेगा या मामला कागजों में ही दम तोड़ देगा?

यह घटना सिर्फ एक ब्रांड की नहीं, बल्कि उस व्यवस्था की भी है जो कार्रवाई के लिए तब जागती है जब नुकसान हो चुका होता है। ब्रांड सुरक्षा, उपभोक्ता अधिकार और व्यापारिक ईमानदारी—तीनों के साथ खिलवाड़ हुआ है।

जब “अन्नपूर्ति” की जगह “धोखापूर्ति” बिकने लगे, तो यह सिर्फ बाजार की नहीं, सिस्टम की भी नाकामी है।

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