नंदी का ‘सर्जिकल एक्शन’: योगी सरकार में लापरवाह अफसरों को अब बख्शा नहीं जाएगा

लखनऊ, एनआईए संवाददाता। 

योगी सरकार के मंत्री नंद गोपाल गुप्ता ‘नंदी’ ने साफ़ संदेश दे दिया है क‍ि “कुर्सी सेवा के लिए है, सैर के लिए नहीं। यूपीसीडा (औद्योगिक विकास प्राधिकरण) में हेमेंद्र प्रताप सिंह नाम के अधिकारी की बर्खास्तगी इस बात की ताज़ा मिसाल है कि अब अफसरशाही में मनमानी और ‘छुट्टी पर शासन’ नहीं चलेगा।

हेमेंद्र प्रताप सिंह, जिन्हें 2020 में ग्रेटर नोएडा से ट्रांसफर कर यूपीसीडा भेजा गया था, डेढ़ साल तक कार्यभार संभाले बिना गायब रहे। यह कोई छुट्टी नहीं थी, बल्कि अनुशासन का सीधा अपमान था। और जब जांच बैठी, तो पूरा खेल सामने आ गया — फर्जी मेडिकल, अनुपस्थिति और आदेशों की अवहेलना।

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नंदी ने न केवल जांच रिपोर्ट पर साइन किए, बल्कि बर्खास्तगी के प्रस्ताव को खुद आगे बढ़ाया। यह वही सख्ती है जिसकी योगी सरकार बार-बार बात करती है — ‘कानून और अनुशासन सबके लिए समान’। यानी जो अधिकारी सरकार की साख पर दाग लगाते हैं, उन्हें अब “सरकारी कुर्सी नहीं, दरवाज़ा दिखाया जाएगा।”

राजनीतिक नज़रिए से देखें तो नंदी का यह कदम सिर्फ़ एक विभागीय कार्रवाई नहीं, बल्कि एक प्रतीकात्मक संदेश है —
योगी कैबिनेट के मंत्री अब विभागों में ‘क्लीन-अप ड्राइव’ पर उतर चुके हैं।
नंदी खुद अपने सख्त और विवादों से न डरने वाले तेवरों के लिए जाने जाते हैं। उनकी यह कार्रवाई आने वाले समय में अन्य विभागों के मंत्रियों पर भी प्रदर्शन का दबाव बढ़ाएगी।

सीएम ऑफिस में फिर लौटे ‘योगी के भरोसेमंद’ सुरेंद्र सिंह

उधर प्रशासनिक हलकों में एक और हलचल – आईएएस सुरेंद्र सिंह की मुख्यमंत्री कार्यालय में वापसी।
वर्ष 2005 बैच के इस अधिकारी को योगी आदित्यनाथ का सबसे भरोसेमंद अफसर माना जाता है।
वाराणसी के डीएम से लेकर मुख्यमंत्री के सचिव तक, हर पद पर उन्होंने डिलीवरी और डिसिप्लिन दोनों दिखाया।

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दिल्ली प्रतिनियुक्ति से लौटकर जैसे ही वह लखनऊ पहुंचे, आदेश निकला  क‍ि “सुरेंद्र सिंह फिर से सचिव मुख्यमंत्री।”
यह लौटना केवल पद पर नहीं, बल्कि ‘विश्वास की वापसी’ है। मुख्यमंत्री ने प्रशासनिक तंत्र में फिर वही चेहरा लगाया है, जो बिना शोर किए काम करवाने के लिए जाना जाता है।

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि आने वाले चुनावी साल में योगी सरकार का फोकस अब “डिलीवरी और डिसिप्लिन” पर रहेगा।

नंदी का एक्शन और सुरेंद्र सिंह की वापसी

दोनों ही उसी ‘मिशन अनुशासन’ के हिस्से हैं, जिसे योगी अपने शासन मॉडल की रीढ़ बनाना चाहते हैं।

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