योगीराज भरत की तपोस्थली भरतकुंड — जहां आस्था की लहरें कभी जीवन से भरी थीं। अब वहीं मछलियां पेट ऊपर किए तैर रही हैं। प्रशासन कह रहा है “ऑक्सीजन की कमी थी।” सवाल उठता है — कुंड में ऑक्सीजन कौन बनाए रखता है, भगवान?
कुंड की जिम्मेदारी किसकी,नगर पंचायत की या बादलों की?
सरोवर नगर पंचायत भरतकुंड भदरसा के अधीन है। इसका रखरखाव, सफाई और मछलियों का संरक्षण नगर पंचायत की जिम्मेदारी है।
लेकिन यहां तीन दिन धूप नहीं निकली, और मछलियाँ मर गईं तो क्या अब हर नगर पंचायत आसमान की ओर देखकर जिम्मेदारी तय करेगी? अगर बादल ही दोषी हैं, तो अधिशासी अधिकारी का पद मौसम विभाग को दे दीजिए !
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एसडीएम की जांच या अंदाजे का जादू?
उपजिलाधिकारी सविता देवी मौके पर पहुंचीं और तुरन्त कह दिया — “ऑक्सीजन की कमी से मछलियाँ मरी हैं।”
वाह! न कोई जांच, न कोई रिपोर्ट, बस नज़र पड़ी और फैसला हो गया !
क्या एसडीएम के पास BOD टेस्ट मशीन है? या अब प्रशासन “पानी देखकर विज्ञान” करने लगा है?
सच तो यह है कि यह “ऑक्सीजन की कमी” वाली लाइन हर बार लापरवाही ढकने का तैयार बहाना बन चुकी है।
रिपोर्ट कहां है — मत्स्य विभाग की या मनगढंत कहानी?
ना मत्स्य विभाग की कोई लैब रिपोर्ट आई,
ना प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का कोई परीक्षण हुआ।
फिर किसने कहा कि ऑक्सीजन कम थी?
कौन-सा वैज्ञानिक नमूना लिया गया, किसने जांचा?
या यह भी “आस्था की तरह मान लो, बस सवाल मत पूछो” वाली रिपोर्ट है?
मछलियां मरीं, फिर दिखावे की सफाई शुरू
मृत मछलियों को निकालकर चूना और ब्लिचिंग पाउडर डाल दिया गया।
यानी “पहले मरने दो, फिर सफाई दिखाओ।”
अगर यही गति है, तो इसे प्रशासन नहीं, प्रदूषण प्रबंधन विभाग कहिए।
सरोवर में महीनों से जलकुंभी और शैवाल पसर रही थीं,
कर्मचारी सो रहे थे। पर जैसे ही कैमरे पहुँचे, “सफाई अभियान” का तमाशा शुरू हो गया।
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धूप नहीं निकली, इसलिए मछलियाँ मरीं? वाह प्रशासन!
अगर तीन दिन बादल छा जाएं और ऑक्सीजन खत्म हो जाए —
तो सर्दियों में जब 15 दिन धूप नहीं निकलती,
क्या सारे तालाबों की मछलियां सामूहिक आत्महत्या कर लेती हैं?
नहीं! क्योंकि जहां व्यवस्था जिंदा होती है, वहां मछलियां नहीं मरतीं।
यहां तो व्यवस्था खुद मरी पड़ी है।
यह मछलियों की नहीं, प्रशासनिक अंत्येष्टि थी
भरतकुंड की मछलियां मरीं, पर असल में दम तो प्रशासन का घुटा।
यह “प्राकृतिक आपदा” नहीं, मानव निर्मित नालायकी है।
तपोभूमि का जल जब सड़ा हुआ मिले,
तो समझिए, प्रणाम करने वाले श्रद्धालु नहीं, जिम्मेदारी से भागने वाले अधिकारी ज़्यादा हैं।
भरतकुंड में ऑक्सीजन की कमी थी या जिम्मेदारी की?
मछलियां मरीं या प्रशासन की आत्मा? जब तक जांच “धूप और बादल” के हवाले है,
तब तक ऐसे कुंडों में मछलियां नहीं, सिस्टम की सच्चाई सड़ती रहेगी।
अफसरों पर हो कड़ी कार्रवाई
यहां पहुंचने वाले श्रद़धालुओं का कहना है कि सीएम योगी जी को कड़ी कार्रवाई अधिकारियों के खिलाफ करनी चाहिये।
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