सहारा पर ताला: सत्ता, सिस्टम और सियासत के खेल का अंत या शुरुआत?”

लखनऊ, एनआईए संवाददाता। 

लखनऊ में सोमवार को जो हुआ, वह महज़ नगर निगम की सीलिंग कार्रवाई नहीं है। वह उस साम्राज्य पर पड़ा ताला था जिसने कभी खुद को “जनता का सहारा” कहा था, मगर आज उसी जनता के पैसे और कर्मचारियों के पसीने पर ताले जड़ दिए गए।

सुबह 11:30 बजे शुरू हुई कार्रवाई शाम तक चली। नगर निगम की टीम ने सहारा शहर की भव्य दीवारों, शानदार बंगले और लकदक गलियारों पर ताले जड़ दिए। सुब्रत रॉय की कोठी, उनकी पत्नी स्वपना रॉय का निवास सब कुछ सील कर दिया गया। अंदर मौजूद कर्मचारियों, सुरक्षाकर्मियों, और यहां तक कि मवेशियों को भी बाहर निकाल दिया गया। नगर निगम के अधिकारी और पुलिस बल मानो किसी बड़ी अपराधी की गिरफ्तारी करने पहुंचे हों।

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लेकिन असली सवाल यहां से शुरू होता है,क्या सीलिंग से समस्या का समाधान हो जाएगा? या यह सिर्फ़ एक ‘नज़रिया दिखाने’ की कार्रवाई है? क्योंकि जिन 900 कर्मचारियों को अब सड़कों पर खड़ा कर दिया गया है, उनकी जेबें पहले ही महीनों से खाली हैं।

वेतन नहीं, पीएफ नहीं, ग्रेच्युटी नहीं बस वादे और तारीखें।

सहारा का यह पतन किसी एक व्यक्ति की कहानी नहीं है। यह उस पूरे आर्थिक और प्रशासनिक तंत्र की नाकामी का आईना है जिसने दशकों तक आंखें मूंद लीं। जब सहारा समूह छोटे निवेशकों से करोड़ों रुपये जमा कर रहा था,
तब सरकारें सिर्फ़ तमाशबीन बनी रहीं। जब अदालतें नोटिस भेजती रहीं, तब भी कार्रवाई की रफ्तार घोंघे जैसी थी और अब जब साम्राज्य ढह गया, तो नगर निगम ने झंडा उठा लिया-जैसे पूरे सिस्टम की सफाई इसी ताले से हो जाएगी।

सहारा के कर्मचारी आज हाईकोर्ट जाने की तैयारी में हैं। उनके चेहरे पर गुस्सा नहीं, बेबसी है। वे कह रहे हैं – “हमें बस हमारा हक़ चाहिए। यह वही लोग हैं जिन्होंने वर्षों तक उस साम्राज्य को चलाया,जिसके मालिक दुनिया के सबसे अमीर भारतीयों की सूची में शामिल थे। आज वही मालिक गुमनाम हैं और वही कर्मचारी सड़क पर।

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लखनऊ नगर निगम अपनी कार्रवाई को कानूनी और प्रशासनिक बता सकता है, पर जनता यह भी जानती है कि इस सीलिंग में सिर्फ़ ईंटें नहीं जड़ी हैं, इसमें राजनीति भी गूंथी गई है। सहारा अब सिर्फ़ एक कारोबारी नाम नहीं,
बल्कि “सत्ता और सिस्टम के रिश्तों” की कहानी बन चुका है।

ताले लग गए हैं, लेकिन सवाल अब भी खुले हैं

क्या सहारा के करोड़ों निवेशकों को कभी उनका पैसा मिलेगा?
क्या कर्मचारियों को उनका हक़ मिलेगा?
और क्या प्रशासन अगली बार किसी ऐसे साम्राज्य को इतना बड़ा होने से पहले रोक पाएगा?

यह कार्रवाई दिखने में सख्त है, पर इसकी असली सख्ती तभी साबित होगी। जब यह ताला सिर्फ़ दीवारों पर नहीं, भ्रष्टाचार, ढिलाई और राजनीतिक संरक्षण पर भी लगे।

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