जल संरक्षण और पर्यावरण रक्षा की दिशा में काम कर रही संस्था सावन पर्यावरण चेतना ने शनिवार को राजधानी लखनऊ के गोमतीनगर स्थित अमांडा होटल में एक जागरूकता संगोष्ठी का आयोजन किया। विषय था – “साइंटिफिक ऑपरेशन एंड क्वालिटी कंट्रोल ऑफ सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट”।
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कार्यक्रम की शुरुआत में संस्था के प्रमुख और वरिष्ठ पर्यावरणविद डॉ. राजेश कुमार सिंह ने जल संरक्षण की गंभीर चुनौती पर चेताते हुए कहा कि दुनिया में उपलब्ध कुल जल का केवल तीन प्रतिशत ही मीठा है। इसमें से भी सिर्फ 1.2 प्रतिशत पीने योग्य है, बाकी ग्लेशियरों में जमा है। ऐसे में जल की बर्बादी रोकना हर इंसान का धर्म है।
एसटीपी से ही बचेगा भविष्य
डॉ. सिंह ने कहा कि बड़े-बड़े संस्थानों और उद्योगों को चाहिए कि वे अपने यहां सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) जरूर लगाएं। उन्होंने जोर देकर कहा कि उपचारित जल को निर्माण कार्य, वाहनों की धुलाई, बागवानी और सिंचाई जैसे कार्यों में प्रयोग किया जाए। इससे न केवल जल की बचत होगी बल्कि शहर की जल आपूर्ति पर दबाव भी कम होगा।
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छात्रों के सवाल, विशेषज्ञों के जवाब
संगोष्ठी में इंटीग्रल यूनिवर्सिटी के पर्यावरण विज्ञान विभाग की प्रोफेसर डॉ. रुश्दा शर्फ, डॉ. अजराम तहूर, डॉ. स्वाति मौर्या और डॉ. आनंद मिश्र सहित कई प्राध्यापक व छात्र-छात्राएं शामिल हुए। छात्रों ने एसटीपी तकनीक और उसके रखरखाव को लेकर कई सवाल पूछे, जिनका उत्तर डॉ. अर्पिता सिन्हा ने विस्तार से दिया।
कार्यक्रम में शामिल प्रमुख लोग
इस अवसर पर सत्येंद्र कुमार सिंह, इं. राजन सिंह कलहंस, डॉ. सचिन तिवारी, प्रज्ञा सिंह, दिव्या श्रीवास्तव, पल्लवी सिंह, अभिलाषा चतुर्वेदी, बृजेंद्र मिश्र, शिवानी शर्मा, अभिषेक, धीरेंद्र, कृष्ण मुरारी, लक्ष्मी नारायण समेत अनेक लोग मौजूद रहे। कार्यक्रम का संचालन आयुषी सिंह ने किया।
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प्रयोगशाला में मिला व्यावहारिक प्रशिक्षण
संगोष्ठी के बाद शैक्षणिक भ्रमण दल को सावन पर्यावरण लैब ले जाया गया, जहां छात्रों ने पर्यावरण संबंधी वैज्ञानिक प्रयोगों और जल संरक्षण तकनीकों का व्यावहारिक प्रशिक्षण भी लिया।
निष्कर्ष
यह कार्यक्रम सिर्फ एक शैक्षणिक पहल नहीं था, बल्कि एक गंभीर चेतावनी भी थी कि अगर अब भी जल की बर्बादी नहीं रोकी गई तो आने वाली पीढ़ियां इसके लिए हमें माफ नहीं करेंगी।
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