इस्कॉन मंदिर में करोड़ों का घोटाला, जाने कब हुई इस्कॉन की स्थापना

लखनऊ/मथुरा। यूपी के मथुरा जिले में वृंदावन स्थित कृष्ण-बलराम इस्कॉन मंदिर में मिलने वाले दान को लेकर बड़ा घोटाला सामने आया है। यहां मंदिर में दान के रुपयों की जिम्मेदारी संभाल रहे कर्मचारी की ही नीयत खराब हो गई।

मौका मिलते ही कर्मचारी दान के करोड़ों रुपये और उसकी रसीद बुकों को लेकर फरार हो गया। इसकी जानकारी मिलते ही मंदिर प्रशासन और पुलिस महकमे में खलबली मच गई। आनन-फानन में कर्मचारी की तलाश की गई तो उसका कहीं कुछ पता नहीं चला। फोन पर बातचीत के दौरान कर्मचारी ने जान से मारने की धमकी दी। मंदिर के चीफ फाइनेंसियल ऑफिसर ने पुलिस से शिकायत की है।

एसएसपी के आदेश पर कोतवाली में नामजद कर्मचारी के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है। पुलिस आरोपी की तलाश में लगी है। इस्कॉन मंदिर के मेंबरशिप डिपार्टमेंट में कार्यरत मुरलीधर दास पुत्र निमाईचंद यादव निवासी श्रीराम कॉलोनी, राऊगंज वासा, इंदौर, मध्य प्रदेश हाल निवासी ओवरब्रिज के पास, छटीकरा, थाना जैत को दान दाताओं को दान रसीद देने के लिये नियुक्त किया गया था।

आरोप है कि मुरलीधर ने इस्कॉन के खाता से 32 रसीद बुकें लेकर अपने पास रख लीं और दान दाताओं द्वारा दी गई करोड़ों रुपये को हड़प लिया। आरोप है कि जब उससे फोन पर संपर्क कर रसीद बुकें और रुपये जमा करने के लिये कहा गया तो जान से मारने की धमकी दी। दान की रसीद बुकों और रुपयों को लेकर फरार हुए कर्मचारी के खिलाफ मंदिर के मुख्य वित्त अधिकारी (सीएफओ) विश्वनाम दास ने 27 दिसंबर को एसएसपी को शिकायत पत्र दिया।

एसएसपी के आदेश पर गुरुवार की देर रात मुरलीधर के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर लिया गया। रमणरेती पुलिस चौकी प्रभारी शिवशरण सिंह को विवेचना सौंपी गई है। मंदिर के पीआरओ रविलोचन दास ने बताया कि कर्मचारी मुरलीधर दान की रकम और रसीद बुके लेकर भागा है। कितना दान था और कहां-कहां से मिला था, इसकी पूरी जानकारी रसीद बुकों के बरामद होने पर हो सकेगी।

1966 में हुई स्थापना
कृष्ण भक्ति में लीन इस अंतरराष्ट्रीय सोसायटी की स्थापना श्रीकृष्णकृपा श्रीमूर्ति श्री अभयचरणारविन्द भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपादजी ने सन् 1966 में न्यू यॉर्क सिटी में की थी। गुरु भक्ति सिद्धांत सरस्वती गोस्वामी ने प्रभुपाद महाराज से कहा तुम युवा हो, तेजस्वी हो, कृष्ण भक्ति का विदेश में प्रचार-प्रसार करों। आदेश का पालन करने के लिए उन्होंने 59 वर्ष की आयु में संन्यास ले लिया और गुरु आज्ञा पूर्ण करने का प्रयास करने लगे।

अथक प्रयासों के बाद सत्तर वर्ष की आयु में न्यूयॉर्क में कृष्णभवनामृत संघ की स्थापना की। न्यूयॉर्क से प्रारंभ हुई कृष्ण भक्ति की निर्मल धारा शीघ्र ही विश्व के कोने-कोने में बहने लगी। कई देश हरे कृष्णा के पावन भजन से गुंजायमान होने लगे।