मंदिर के पास शराब का अड्डा: पुलिस-आबकारी की मिलीभगत बेनकाब

शिकायतों पर कार्रवाई क्यों नहीं? सवालों के घेरे में पूरा प्रशासन

लखनऊ, एनआईए संवाददाता। 

शनिमंदिर के पास खुले मॉडल शॉप को लेकर जनता का गुस्सा लगातार बढ़ता जा रहा है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि जब सुप्रीम कोर्ट और सरकार के आदेश साफ हैं, तब भी यह दुकान अब तक क्यों नहीं बंद हुई? इसका जवाब सीधा है — प्रशासनिक तंत्र की सांठगांठ और मिलीभगत।

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शिकायतें गईं ठंडे बस्ते में

स्थानीय निवासियों का कहना है कि उन्होंने कई बार पुलिस थाने, आबकारी विभाग और जिलाधिकारी को लिखित शिकायतें दीं। लेकिन हर बार या तो कार्रवाई का आश्वासन दिया गया या शिकायत को टाल दिया गया।

आबकारी विभाग ने तो उल्टा मंदिर का “रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट” माँग लिया। सवाल यह है कि क्या किसी मंदिर की पवित्रता और अस्तित्व का सबूत कागज़ से तय होगा?

पुलिस पर आरोप है कि वह दुकान संचालक के साथ मिली हुई है और छेड़खानी की घटनाओं पर रिपोर्ट दर्ज ही नहीं करती।

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मिलीभगत के सबूत जैसे हालात

दुकान के बाहर शराबियों का जमावड़ा रोज लगता है, फिर भी पुलिस की गश्त कभी दिखाई नहीं देती।

क्षेत्रीय लोग कहते हैं कि “दुकान से वसूली होती है, तभी अधिकारी चुप हैं।”

आबकारी महकमा नियमों की धज्जियाँ उड़ते देख रहा है, लेकिन दुकान बंद कराने की कोई कार्रवाई नहीं करता।

विशेषज्ञों की टिप्पणी

अधिवक्ता विजय बहादुर सिंह: “यह केस सिर्फ कानून के उल्लंघन का नहीं, बल्कि प्रशासनिक भ्रष्टाचार का भी है। कोर्ट चाहे तो इसमें शामिल अधिकारियों पर आपराधिक मुकदमा चल सकता है।”

सामाजिक कार्यकर्ता अनीता चौहान: “पुलिस-आबकारी महकमे की मिलीभगत साफ दिखाई देती है। यही कारण है कि महिलाओं की सुरक्षा दाँव पर लगी हुई है।”

जनता का अल्टीमेटम

अब मोहल्लेवासियों और भक्तों ने तय कर लिया है कि अगर अगले कुछ दिनों में दुकान बंद नहीं की गई तो वे मंदिर परिसर से ही आंदोलन शुरू करेंगे। लोग सड़क जाम और धरना-प्रदर्शन की चेतावनी दे चुके हैं।

प्रशासन की चुप्पी, जनता का गुस्सा

यह सवाल पूरे प्रदेश के लिए नजीर है –

क्या सरकार बहन-बेटियों की सुरक्षा से ज्यादा शराब कारोबारियों की कमाई की चिंता में है?

जब नियम साफ हैं तो अधिकारी किसके दबाव में चुप हैं?

आस्था का अपमान और महिलाओं की सुरक्षा का संकट क्या प्रशासन की नाकामी का सबसे बड़ा सबूत नहीं है?

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