इलाहाबाद हाईकोर्ट का अहम निर्णय, विवाह‍ित महिला से शादी के ल‍िए बाध्‍य नहीं प्रेमी

लखनऊ, एनआईए संवाददाता। 

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि यदि कोई पुरुष किसी विवाहित महिला से प्रेम संबंध बनाता है और विवाह का वादा करता है, मगर बाद में उससे विवाह नहीं करता है तो इसे अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है, विशेषकर तब, जब महिला का अपने पति से विवाह विच्छेद (तलाक) नहीं हुआ हो।

यह निर्णय न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की एकल पीठ ने सुनाया, जिसमें सत्र अदालत के पूर्व आदेश को विधिपूर्ण बताया गया।

कोर्ट की प्रमुख टिप्पणियां

अभियुक्त को दुराचार और भ्रूण हत्या के आरोपों से मुक्त किया गया।

पीड़िता ने अपनी इच्छा से अभियुक्त से संबंध बनाए, इसमें कोई ज़बरदस्ती नहीं हुई।

भ्रूण हत्या के साक्ष्य (अल्ट्रासाउंड) पर तिथि अंकित नहीं थी, जिससे यह स्पष्ट नहीं कि गर्भ अभियुक्त से था या पति से।

विवाह विच्छेद न होने के बावजूद अभियुक्त से सम्बंध बनाना पीड़िता की स्वतंत्र मर्जी थी।

IPC की धारा 497 (अब असंवैधानिक घोषित) अगर लागू होती, तो अपराध पीड़िता पर भी बनता।

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केस की पृष्ठभूमि

पीड़िता और अभियुक्त के बीच सात वर्षों पूर्व प्रेम संबंध थे।

पीड़िता के गर्भवती होने और गर्भपात के बाद भी संबंध बने रहे, जबकि पीड़िता का विवाह किसी और से हो चुका था।

अभियुक्त ने अंततः विवाह करने से इनकार कर दिया।

सत्र अदालत ने पाया कि पीड़िता ने अपने विवाहित होने की स्थिति में भी स्वेच्छा से संबंध बनाए, अतः दुराचार साबित नहीं होता।

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