बस्ती में जिला आयुष अस्पतालों की हालत सरकार की नीतियों के विपरीत निकलकर सामने आई है। हैरानी की बात यह है कि पिछले चार वर्षों से एक भी रुपये की होम्योपैथिक दवा सीएमओ कार्यालय की ओर से किसी भी आयुष अस्पताल को उपलब्ध नहीं कराई गई। इसके बावजूद 22 आयुष डॉक्टरों ने अपनी जिम्मेदारी और विभाग की साख बचाने के लिए अपनी जेब से लाखों रुपये खर्च कर मरीजों का इलाज किया।
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डॉक्टरों ने 1 अप्रैल 2024 से 31 मार्च 2025 के बीच कुल 2,18,388 मरीजों का इलाज किया। यह आंकड़ा तब सामने आया जब आयुष विभाग की समीक्षा में दवा सप्लाई न मिलने की बात स्पष्ट रूप से स्वीकार की गई।
सीएमओ के पास हर साल 35 लाख का बजट, खर्च कहां हुआ, कोई जवाब नहीं
सूत्रों के अनुसार, आयुष दवाओं के लिए हर साल लगभग 35 लाख रुपये का बजट जारी होता है। यह पैसा कहां खर्च होता है, किस मद में जाता है। इसका स्पष्ट जवाब न तो संबंधित अधिकारी दे पा रहे हैं और न ही बैठक में मौजूद विभागीय प्रतिनिधि।
दिशा समिति की बैठक में एमएलसी प्रतिनिधि हरीश सिंह ने जब दवा बजट पर सवाल उठाया तो सीएमओ स्पष्ट जवाब नहीं दे सके। मामला आज भी अनुत्तरित है।
डॉक्टरों को मिला 4 करोड़ मानदेय, लेकिन दवा एक रुपया नहीं
एनएचएम के तहत 22 डॉक्टरों को लगभग चार करोड़ रुपये का मानदेय दिया गया, लेकिन चिकित्सालयों को दवाओं के लिए एक भी रुपया उपलब्ध नहीं कराया गया। दवा खरीदने की जिम्मेदारी सीधे डॉक्टरों के ऊपर छोड़ दी गई।
आयुष के नोडल अधिकारी डॉ. वी.के. वर्मा ने भी स्वीकार किया कि पिछले चार साल से सीएमओ की ओर से कोई दवा सप्लाई नहीं हुई। उन्होंने कहा कि “डॉक्टरों ने अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए मरीजों को बिना दवा सप्लाई के भी सेवा दी है।”
सरकार की मंशा, एक छत के नीचे सभी पद्धतियों का इलाज, हकीकत चार साल तक दवा नहीं
सरकार का लक्ष्य है कि जिला अस्पतालों और CHC/PHC पर एलोपैथी, आयुष और होम्योपैथी सभी पद्धतियों का इलाज लोगों को एक जगह उपलब्ध हो। इसी उद्देश्य से डॉक्टरों की तैनाती की गई है:
जिला अस्पताल आयुष विंग: डॉ. वी.के. वर्मा, डॉ. सतीश चंद्र चौधरी, डॉ. जुनैद अहमद खान
सीएचसी/पीएचसी: कप्तानगंज, चिलमा, दुबौलिया, सल्टौआ, मुसहागौर, पकड़ीचंदा, हरदी, बहादुरपुर, सिकंदरपुर आदि केंद्रों पर कुल 22 डॉक्टर
लेकिन दवा सप्लाई बंद रहने से इस उद्देश्य को धरातल पर लागू नहीं किया जा सका।
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कौन डॉक्टर ने कितने मरीज देखे, रिकॉर्ड भी चौंकाने वाला
डॉ. वी.के. वर्मा—28637 मरीज
डॉ. वंदना तिवारी—10035 मरीज (महिला डॉक्टरों में सबसे अधिक)
इन सभी डॉक्टरों ने अपनी जेब से दवा खरीदकर मरीजों को मुफ्त इलाज उपलब्ध कराया।
चार साल से दवा नहीं, लेकिन मरीजों का इलाज जारी,क्या जवाब देगा प्रशासन?
जिले के आयुष अस्पतालों की यह स्थिति सरकार की स्वास्थ्य योजनाओं पर गंभीर सवाल खड़े करती है। एक तरफ सालाना लाखों रुपये के बजट जारी होते हैं, वहीं दूसरी तरफ अस्पतालों में दवा का नाम तक नहीं।
डॉक्टरों ने अपनी सेवा भावना से मरीजों को राहत तो दी, लेकिन दवा सप्लाई में हुई अनियमितताओं पर प्रशासन की चुप्पी अब भी सवालों के घेरे में है।
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