बस्ती में मौत की डिलीवरी – तीन-तीन बच्चे खोने के बाद विभाग जागा,  अब जांच का राग

बस्ती, एनआईए संवाददाता। 

तीन मासूमों की मौत के बाद भी अगर किसी सिस्टम की आत्मा नहीं कांपी, तो समझ लीजिए उस सिस्टम की संवेदनाएं मर चुकी हैं।
एक मां ने तीन बच्चों को जन्म दिया और 22 घंटे में तीनों की लाशें लौट आईं।
लापरवाही की यह कहानी किसी दूरदराज़ इलाके की नहीं, बल्कि स्वास्थ्य विभाग की “देखरेख” वाले बस्ती जिले की है।

मामला साऊंघाट ब्लॉक के गंधरिया फैज गांव का है। गीता देवी पत्नी अनुज कुमार को पचपेड़िया रोड स्थित एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। घरवालों को बताया गया-“जुड़वा बच्चे हैं।” लेकिन ऑपरेशन के वक्त जब तीन बच्चे निकले, तो डॉक्टरों के होश उड़ गए।

पर जिम्मेदारी? वो किसी की नहीं!

22 घंटे के अंदर तीनों नवजातों की मौत हो गई। प्रसव के दौरान मां की हालत भी गंभीर हो गई।
डॉक्टरों ने इसे “दुर्लभ मामला” कहकर पल्ला झाड़ लिया।
लेकिन असली सवाल यह है-

जब गर्भ में तीन बच्चे थे, तो क्या किसी ने अल्ट्रासाउंड देखा भी था?
क्या इस केस को हाईरिस्क प्रेग्नेंसी की श्रेणी में रखा गया था?
और अगर नहीं, तो यह सीधी हत्या जैसी लापरवाही नहीं तो क्या है?

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स्वास्थ्य विभाग की गाइडलाइन साफ है- जुड़वा या उससे ज्यादा बच्चे होने पर मामला “हाई रिस्क” होता है
ऐसे केस में प्रसव जिला अस्पताल या मेडिकल कॉलेज में होना चाहिए।
लेकिन यहां हुआ उल्टा- मरीज को बिना जांच, बिना तैयारी, निजी अस्पताल के हवाले कर दिया गया।
अब जब तीनों बच्चों की जान चली गई, तो विभाग कह रहा है- जांच टीम गठित की गई है!”

वाह विभाग! जब ज़िंदगियां जा चुकीं, तब कागज़ों में करुणा दिखाई जा रही है।

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सीएमओ ने तीन सदस्यीय जांच टीम बना दी है- जिसमें डिप्टी सीएमओ डॉ. बृजेश कुमार शुक्ला, बालरोग विशेषज्ञ डॉ. जे.पी. चौधरी, और स्त्रीरोग विशेषज्ञ डॉ. अमरजीत बरई शामिल हैं।
अब यह टीम जांच करेगी कि “क्या वाकई लापरवाही हुई थी?”
जैसे कि तीन नवजातों की मौत अपने आप हुई हो!

यह मामला सिर्फ एक परिवार की त्रासदी नहीं- यह सरकारी स्वास्थ्य तंत्र की लाचारी का दस्तावेज़ है।
जहां गाइडलाइन किताबों में रहती है, और मरीज कब्रिस्तान में।

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