नगर निगम का मार्ग प्रकाश विभाग फिर से विवादों में घिर गया है। शहर में 16 हजार स्ट्रीट लाइट लगाने वाले 10 करोड़ रुपये के टेंडर में गड़बड़ी सामने आई है। शिकायतें और दबाव बढ़ने के बाद नगर निगम ने टेंडर को दोबारा निकालने का निर्देश दिया है। नया टेंडर 29 सितंबर को खुल जाएगा।
हालांकि, शहरवासियों का कहना है कि यह सब जनता की नजरों में धूल झोंकने का खेल है। मौजूदा समय में शहर में करीब 1100 स्ट्रीट लाइट शिकायतें लंबित हैं, 200 IGRS, 700 ऑनलाइन और 200 मैनुअल। फैजुल्लागंज, पेपर मिल वार्ड और जोन आठ के इलाकों में अंधेरा ही अंधेरा है।
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मामले की हकीकत यह है कि टेंडर में केवल छह कंपनियों का नाम शामिल किया गया, जबकि लोक निर्माण विभाग से प्रमाणित 18 कंपनियां थीं। सीधे शब्दों में कहें तो कुछ अधिकारियों ने नियमों को ठेंगा दिखाकर लाभ पहुंचाने की कोशिश की। नगर आयुक्त के हस्तक्षेप के बाद टेंडर दोबारा करना पड़ा और बाकी प्रमाणित कंपनियों को शामिल किया गया।
मार्ग प्रकाश विभाग के चीफ इंजीनियर मनोज प्रभात का दावा है कि यह क्वालिटी सुनिश्चित करने का मामला था। लेकिन जनता सवाल पूछ रही है—क्या क्वालिटी का मतलब केवल चुनिंदा कंपनियों को फायदा देना है?
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विस्तारित क्षेत्र के 88 गांव अब भी अंधेरे में हैं। नगर निगम में शामिल होने के बाद भी पंचायती राज विभाग ने बजट रोक रखा था, जिससे विकास ठप। अब टेंडर के जरिए इन गांवों में लाइट लगाई जाएगी, लेकिन शहरवासियों का भरोसा टूट चुका है।
लखनऊवासियों और जनप्रतिनिधियों का कहना है कि मार्ग प्रकाश विभाग की लापरवाही और संभावित भ्रष्टाचार ने शहर को अंधेरे में डाल दिया है। सवाल साफ है, क्या निगम केवल टेंडर में घोटाले की राजनीति कर रहा है या जनता की रोशनी की चिंता भी करता है?
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