सहारा साम्राज्य: लखनऊ में ढहती इमारतें और सिमटता रसूख

लखनऊ, एनआईए संवाददाता। 

कभी शान-ओ-शौकत, राजनीतिक रसूख और सितारों की महफिलों का केंद्र रहा सहारा साम्राज्य आज सरकारी नोटिसों और कुर्की के बोर्डों के बीच अपने अंतिम दिन गिन रहा है। सहारा श्री सुब्रत रॉय के देहांत के बाद उनकी बनाई सल्तनत तेजी से बिखर रही है। जहां कभी भव्य पार्टियों की रौनक और क्रिकेट-फिल्मी सितारों का जमघट लगा रहता था, आज वहीं प्रशासनिक टीमें कब्जा लेने पहुंच रही हैं।

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टैक्स और नियम उल्लंघन बना सबसे बड़ा हथियार

लखनऊ विकास प्राधिकरण (एलडीए) और नगर निगम ने बीते महीनों में सहारा की कई जमीनें और इमारतें जब्त की हैं। नियमों और शर्तों का उल्लंघन, टैक्स की भारी देनदारी और लीज रिन्यू न कराना—ये सब कारण अब सहारा साम्राज्य को ध्वस्त करने के औजार बन चुके हैं।

सहारा शहर की 170 एकड़ जमीन नगर निगम ने कब्जे में ले ली।

100 एकड़ ग्रीन बेल्ट जमीन एलडीए ने वापस लेकर बायोडायवर्सिटी पार्क बनाने की योजना शुरू की।

विभूतिखंड का सहारा बाजार कॉम्प्लेक्स भी एलडीए ने कब्जे में लेकर 85 करोड़ की रिजर्व प्राइस पर नीलामी के लिए अधिसूचना जारी कर दी है।

करीब 20 करोड़ की प्रॉपर्टी टैक्स देनदारी जिला प्रशासन के रिकॉर्ड में दर्ज है।

निवेशकों और खरीदारों की अधूरी उम्मीदें

सहारा शहर और अन्य प्रोजेक्ट्स में हजारों लोगों ने घर या दुकान की आस में निवेश किया था। लेकिन कई योजनाएं अधूरी रह गईं। अब जब सरकारी विभाग एक-एक कर सहारा की प्रॉपर्टीज पर कब्जा कर रहे हैं, तो इन निवेशकों की उम्मीदें भी खंडहर होती जा रही हैं।

रसूख से बेदखली तक का सफर

सुब्रत रॉय कभी सत्ता और शोहरत के गलियारों के सबसे ताकतवर नामों में गिने जाते थे। बाबा रामदेव से लेकर फिल्मी हस्तियों और क्रिकेटरों तक की संगत में उनकी शख्सियत चमकती थी। लेकिन अब वही साम्राज्य कानूनी पचड़ों, टैक्स बकाये और सेबी की कुर्की की वजह से ढहता नजर आ रहा है।

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सवाल जो उठते हैं

नगर निगम और एलडीए की ये कार्रवाइयां कानूनी हैं, लेकिन क्या ये सिर्फ कानून का पालन है या फिर सत्ता की बदलती हवाओं का असर? सहारा समूह ने भी पलटवार करते हुए दावा किया है कि उसने 800 करोड़ रुपए खर्च किए, योजना में देरी और विवादों के लिए प्रशासन ही जिम्मेदार है।

अंततः, एक चेतावनी की कहानी

सहारा साम्राज्य का यह पतन एक चेतावनी है—कानून और व्यवस्था के सामने रसूख, दौलत और शान-ओ-शौकत ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पाते। सवाल यह है कि क्या सहारा की विरासत सिर्फ अधूरी इमारतों, बंद कॉम्प्लेक्स और कुर्क प्रॉपर्टीज तक ही सिमटकर रह जाएगी?

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