पंचायती मन्दिर, नबाबपुरा में श्रीमद्भागवत कथा के तृतीय दिवस आचार्य धीरशान्त अर्द्धमौनी ने बताया कि नित्य वस्तु के लिये अनित्य वस्तु का त्याग कर देना चाहिये, लेकिन असत्य के लिये सत्य वस्तु का त्याग नहीं करना चाहिये। भगवान श्रीराम चरित मानस का सुन्दर वर्णन करते हुए समझाया कि धीरता, वीरता, गम्भीरता-यह तीन वस्तु भूलने की नहीं है। सबसे बढ़कर दया का पात्र वही है, जो दुःख से पीड़ित हो, भय में फँसा हुआ हो। सबको अभय देकर संसार में रहना चाहिये अर्थात् अपने द्वारा किसी को भय नहीं होना चाहिये। जितने उत्तम उत्तम गुण हैं, उनको धारण करना चाहिये। जैसे भरतजी महाराज गुणों के सागर थे, वैसे ही हम लोगों को गुणों का सागर बनना चाहिये।
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सैंकड़ों जन्मों के पश्चात् पुण्य जागने पर ही किसी को भारत की भूमि पर मनुष्ये के रूप में जन्म मिलता है। जो सत्य की खोज में लगा है, वही सदाचारी है। सत्य भाषण, सत्य आचार, सत्य व्यवहार उस सत्य की प्राप्ति के साधन है। वह सत्य भगवान् का ही नामान्तर है। केवल ईश्वर की भक्ति के प्रताप से सारे सगुण अपने आप आ जायँगे, अत: इधर उधर मन न लगाकर भगवान् की भक्ति करनी चाहिये।
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तीन प्रकार के दोष हैं- मल, विक्षेप और आवरण। ये तीनों दोष भक्ति से नष्ट हो जाते हैं। महात्मा लोग मान, बड़ाई, कीर्ति जीते-जी और मरने के बाद भी हृदय से नहीं चाहते। महात्मा पुरुष अमानी होते हैं। जो ईश्वर का भक्त नहीं है, उसी को काम, क्रोध आदि सताते हैं। जो ईश्वर का भक्त है, उसको काम-क्रोधादि नहीं सता सकते। अपने शरीर से जहाँ तक बन सके, निष्काम भाव से दूसरों की सेवा करनी चाहिये। यह भी भजन-ध्यान के समान ही है।
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जिसके हृदय में भगवान की शुद्ध भक्ति का भाव बढ़ता है वहीं भगवान की परमसत्ता को प्राप्त कर लेता है। कथा में व्यवस्था में अरविन्द अग्रवाल जोनी, राजेश रस्तोगी, महन्त अमित नाथ बोबी, किशन प्रजापति, माधव कान्ता देवी दासी, अंकित पण्डित, राम गोपाल, पवन अग्रवाल, सुधा शर्मा, जगदीश यादव, देवांश अग्रवाल, ममता रानी, महालक्ष्मी देवी दासी, पं० अनिल भारद्वाज, मधुरिमा जौहरी, पं० जगदम्बा प्रसाद आदि सहित सैकड़ों भक्त उपस्थित रहे।