अयोध्या में जब एक मासूम ज़िंदगी बुझ गई, तब जाकर स्वास्थ्य विभाग जागा। प्रसूता की मौत के बाद शुरू हुई हड़कंप भरी कार्रवाई में विभाग ने आखिरकार दो निजी अस्पतालों को सील कर दिया है। सवाल यह है कि जब ये अस्पताल बिना मानक, बिना डॉक्टर और बिना सुविधा के चल रहे थे -तब विभाग की आंखों पर पट्टी क्यों बंधी थी?
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तारुन बाजार का प्रेम अस्पताल, जहां गर्भवती महिला को भर्ती किया गया, वही इस पूरे मामले की जड़ है। जब केस बिगड़ा तो मरीज को वैष्णवी अस्पताल भेज दिया गया। वहां ऑपरेशन हुआ, हालत और बिगड़ी, फिर लखनऊ रेफर कर दिया गया और आखिरकार प्रसूता की मौत हो गई।
अब विभाग कह रहा है “जांच होगी!”
पर सवाल यह भी है-मौत के बाद जांच क्यों, पहले निरीक्षण क्यों नहीं?
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निरीक्षण के दौरान स्वास्थ्य विभाग को प्रेम अस्पताल में न तो मानक के अनुरूप डॉक्टर मिले, न पैरामेडिकल स्टाफ। वैष्णवी अस्पताल में भी अव्यवस्था और चिकित्सा मानकों की धज्जियां उड़ी मिलीं। दोनों अस्पताल अब सील कर दिए गए हैं।
लेकिन ये सिर्फ सीलिंग नहीं, सिस्टम की नाकामी की मोहर है।
इतना ही नहीं, तारुन का पब्लिक अस्पताल भी विभागीय कार्रवाई की जद में आ गया। वहां प्रसव के दौरान लापरवाही इतनी गंभीर थी कि विभाग को खुद स्वीकार करना पड़ा — “मानक व्यवस्था नहीं थी।”
अब दोनो मामलों में जांच कमेटी गठित की गई है। यानी- “पहले जान गई, अब फाइल चलेगी।”
निरीक्षण में डिप्टी सीएमओ डॉ. वी.पी. त्रिपाठी, डॉ. राजेश चौधरी और एआरओ सद्दाम खान मौजूद थे।
लेकिन जनता अब पूछ रही है- क्या ये अस्पताल प्रशासन की नाक के नीचे बिना अनुमति चलते रहे, और किसी को दिखा ही नहीं?
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