बलरामपुर: भ्रष्टाचार के दलदल में डूबा प्रशासन, जनप्रतिनिधियों और कर्मचारियों का संयुक्त विरोध प्रदर्शन

बलरामपुर, एनआईए संवाददाता।

एक ओर केंद्र और उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की डबल इंजन सरकार अपने जनकल्याणकारी योजनाओं और ईमानदार शासन व्यवस्था को लेकर देश-विदेश में प्रशंसा प्राप्त कर रही है, वहीं बलरामपुर जनपद में जिलास्तरीय प्रशासन पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगते जा रहे हैं। हालात ऐसे हो गए हैं कि ग्राम प्रधान, रोजगार सेवक, पंचायत सचिव, वकील और आम नागरिक तक आंदोलित होकर प्रदर्शन करने पर मजबूर हो गए हैं। यह जानकारी 292, गैसड़ी विधानसभा बलरामपुर के निवर्तमान विधायक शैलेश कुमार सिंह शैलू ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर दी। उन्होंने बताया कि मनरेगा जैसी गरीबों की सबसे बड़ी रोजगार योजना में भी भ्रष्टाचार अपनी चरम सीमा पर है। ग्राम पंचायतों में कार्य कराने के लिए 3 प्रतिशत का कमीशन अनिवार्य कर दिया गया है। कमीशन न देने वाले प्रधानों और कर्मचारियों को जांच के नाम पर डराया-धमकाया जाता है।

प्रमाणपत्रों के लिए रिश्वतखोरी

बलरामपुर में जाति, निवास, आय और अन्य प्रमाणपत्रों के लिए आमजन को महीनों तक चक्कर लगाने पड़ते हैं। आरोप है कि जब तक 500 से 5000 रूपये की रिश्वत न दी जाए, तब तक फाइल आगे नहीं बढ़ती। पैसे देने पर आवेदकों को फोन कर बुलाया जाता है।

गाय हटाओ, जांच रोको: नाम पर वसूली

राज्यपाल, मुख्यमंत्री या वरिष्ठ अधिकारियों के दौरे के नाम पर हर महीने ग्राम प्रधानों और सचिवों से 5000 से 15000 तक की वसूली होती है। कहा जाता है कि यदि पैसा नहीं दोगे तो तुम्हारे गांव की जांच होगी।

सड़कों को उखाड़ कर छोड़ा, जल जीवन मिशन में भारी लापरवाही

जल जीवन मिशन के तहत बलरामपुर के गांवों में नई व पुरानी बनी सड़कों को पाइपलाइन बिछाने के लिए जेसीबी से तोड़ दिया गया, लेकिन महीनों बीत जाने के बाद भी उन्हें दोबारा नहीं बनाया गया। स्थानीय शिकायतों के बावजूद कोई समाधान नहीं हुआ।

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अधिवक्ताओं तक को करना पड़ा विरोध

जिलाधिकारी के कार्यशैली से नाखुश अधिवक्ताओं ने भी भ्रष्टाचार और गलत निर्णयों के खिलाफ ऐतिहासिक प्रदर्शन किया। अधिवक्ताओं ने कहा कि यदि शासन स्तर पर कोई कार्रवाई नहीं हुई तो आंदोलन और व्यापक होगा।

बाढ़ राहत में भी भ्रष्टाचार

बाढ़ राहत सामग्री के वितरण में भी जमकर घोटाला हुआ। जहां गांव में 400 राहत पैकेट की जरूरत थी, वहां सिर्फ 200 बांटकर 400 की संख्या पूरी दिखा दी गई। मुआवजे के नाम पर भी किसानों के साथ भेदभाव हुआ।

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लेखपालों की खुली रिश्वत नीति

कई वर्षों से एक ही जगह पर तैनात लेखपालों द्वारा जमीन की नपाई के नाम पर प्रति गाटा ₹5000 की मांग की जाती है। बिना रिश्वत नपाई कार्य नहीं होता, शिकायत करने पर जवाब मिलता है ऊपर वालों को देना पड़ता है।

नगर पालिका में भी कमीशन राज

शहरी क्षेत्रों की नगर पंचायतों में विकास कार्यों की स्वीकृति और निरीक्षण के लिए 6 प्रतिशत तक का कमीशन लिया जाता है। जिले स्तर पर जांच के नाम पर केवल खानापूर्ति होती है।

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जनता का आक्रोश, सरकार की छवि को झटका

बलरामपुर की इन घटनाओं ने जनता को व्यवस्था पर से विश्वास डगमगाने पर मजबूर कर दिया है। आम लोग अब डरे हुए हैं, असहाय महसूस कर रहे हैं, और अपनी समस्याओं को लेकर किसी सुनवाई की उम्मीद नहीं कर पा रहे हैं।

यदि शासन द्वारा शीघ्र संज्ञान नहीं लिया गया, तो यह मुद्दा 2024-25 की आगामी राजनीति और जनमत पर गहरा असर डाल सकता है।

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