पशुपालन विभाग : गलत नीति दे दे रही है आवारा पशुओं को जन्म

पशुओं के हमले से आमजन परेशान

चौराहों पर अक्सर सांडों के लड़ने से लोग होते हैं घायल

हम बात कर रहे हैं, उन पशुओं के बारे में जो शहर से लेकर खेत खलियानों तक आवारा घूमते हैं और किसानो की फसलों को चट कर जाते हैं जबकि शहरी क्षेत्र में घूमने वाले पशु आपस में लड़ते हैं और आसपास से गुजरने वाले राहगीरों को चोट पहुंचाते हैं. पिछले कुछ वर्षों में इन आवारा पशुओं की तादाद बहुत तेजी से बढ़ी है. इसको लेकर विपक्ष भी अक्सर सरकार पर हमलावर रहता है.

हम कहें कि इसके पीछे अगर सरकार की नीतियां गलत है तो शायद गलत नहीं होगा. वर्तमान में सरकार के पशुपालन विभाग की वही स्थिति है जो आबकारी विभाग की है. एक ओर आबकारी विभाग के वरिष्ठ अफसर मातहतों निर्देश देते हैं कि शराब बिक्री का लक्ष्य पूरा किया जाए. अधिक से अधिक शराब की बिक्री की जाए. वहीं इस विभाग की दूसरी इकाई मध्य निषेध विभाग लोगों को यह बताने की कोशिश करता है कि शराब पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है. लिहाजा इससे आप सभी दूर रहें. बिल्कुल इसी पैटर्न पर इन दिनों सरकार और उसका पशुपालन महकमा काम कर रहा है.

एक ओर सरकार बछिया पैदा करने के लिए सेक्सड सीमेन ₹100 में लगवा रही है वहीं दूसरी ओर बछड़ा पैदा करने वाला सीमेन स्ट्रॉ फ्री में लगवा रही है. तो इससे जाहिर है कि बछड़ों की तादाद बढ़ेगी और यही बछड़े बड़े होकर सांड बनते हैं. और वह ही चौराहों पर लड़ते हैं. बाद में चलने वाले धर पकड़ अभियान के तहत इनको निराश्रित पशुओं के बाड़े में भेजा जाता है. जिन्हें 600 करोड़ रूपया सालाना खर्च करके सरकार आश्रय स्थल केन्द्रों पर संरक्षित कर रही है.

इसलिए सवाल यह उठता है कि बछड़ा पैदा करने के लिए फ्री में सीमेंन लगवाने की क्या आवश्यकता है? यही नहीं इन गोवंश पशुओं को आश्रय स्थलों पर जिन बैलों, बछड़ों और सांडों को रखा जा रहा है. उन्हें जो चारा दिया जा रहा है. वह किस फीडिंग फार्मूला के तहत दिया जा रहा है. इसका भी कुछ आता पता नहीं है. इसके अलावा जब चिकित्सकों और फार्मासिस्टों की ड्यूटी चुनाव अथवा जनगणना सहित अन्य कार्यों में लगा दी जाती है. तब इन गोवंश आश्रय स्थलों में रहने वाले पशुओं की इलाज कौन करता है? इसके बारे में भी कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं है.

ऐसे में यहां पर रहने वाले पशुओं की देखभाल न हो पाना लाजमी है. जब मामला मीडिया में उठता है. तब जिलाधिकारी पशुपालन महकमे के जिम्मेदार कर्मियों पर गाज गिराकर अपने कर्तव्यों की इतिती श्री कर लेते हैं. वहीं जिन अस्पतालों में पशुचिकित्सकों, फार्मासिस्टों के पद खाली हैं, वहां पशुओं का इलाज कौन कर रहा है ? इसका भी जिक्र नहीं होता है. सरकार पशुओं को पालने के लिए नंद बाबा समेत बहुत सारी योजनाएं चल रही है.

मगर उन किसानों और पशुपालकों पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं कर पा रही है जो अपने पालतू पशुओं को छुट्टा घूमने के लिए छोड़ देते हैं. कायदे में सरकार को यह चाहिए कि जो किसान अथवा पशुपालक पालतू पशुओं को छोड़ते हैं उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाये और पालतू पशुओं के लिए ईयर टैगिंग की व्यवस्था को अनिवार्य कर दे. इसके लिए सरकार को कानून बनाना चाहिए और जो किसान अथवा पशुपालक ईयर टैगिंग लगवाने का विरोध करें उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए. इसी तरह सरकार को पशु चिकित्सा सेवा को भी इमरजेंसी सेवा में समाहित करना चाहिए.

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