प्रयागराज। प्रयागराज महाकुम्भ की शुरूआत में अब चंद दिन ही शेष हैं। 144 वर्षों बाद आयोजित हो रहे इस महाकुम्भ का साक्षी बनने के लिए लाखों श्रद्धालु प्रयागराज पहुंच रहे हैं। श्रद्धालुओं की भारी भीड़ को देखते हुए शासन-प्रशासन दिन-रात आयोजन की तैयारियां में जुटा है। साथ ही प्रयागराज आने वाले श्रद्धालुओं की सुरक्षा को लेकर भी तमाम पुख्ता प्रबन्ध किए गए हैं, ताकि किसी भी तरह की अप्रिय घटना को टाला जा सके। इस बीच प्रयागराज कुम्भ की ऐसी घटनाएं है, जो शायद कभी दिलोदिमाग से मिटती नहीं है।
प्रयागराज के बारे में ऐसा कहा जाता है कि यहां पर हर साल आयोजित होने वाले माघ मेले और छह व बारह साल पर लगने वाले कुम्भ मेला में लाखों-करोड़ों की भीड़ एक स्थान पर जुटने के बावजूद कोई दुखद घटना नहीं घटती, इसके पीछे भगवान और गंगा मैया की कृपा है। मगर यह भी सच है कि प्रयागराज के दो कुम्भ की तमाम सुखद यादों के बीच भगदड़ की दो घटनाएं ऐसी रहीं जिन्होंने बहुत से परिवारों को जीवन भर का गम दे दिया था। घटना 1954 और 2013 में हुए कुंभ मेलों की है, जो बहुत ही दर्दनाक थी। इन दोनों घटनाओं में सैकड़ों लोगों ने जान गंवाई थी। इस हादसे ने शासन-प्रशासन की व्यवस्थाओं की पोल खोलकर रख दी थी।
1954 का कुम्भ मेला छोड़ गया दुखद यादें
स्वतन्त्र भारत में 1954 में कुम्भ मेला हुआ था। 3 फरवरी की तारीख थी, मौनी अमावस्या का दिन था। इस दिन त्रिवेणी बांध पर भगदड़ मच गई, जिसके परिणामस्वरूप सैकड़ों श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी। बताया जाता है कि इस घटना के समय वहां पंडित जवाहरलाल नेहरू भी उपस्थित थे और एक हाथी के नियंत्रण से बाहर होने के कारण भगदड़ का माहौल बना। जिसमें करीब 800 लोगों की जान चली गई थी और करीब 2000 लोग गंभीर रूप से घायल हुए। हादसे के बाद पं. नेहरू ने न्यायमूर्ति कमलाकांत वर्मा की अध्यक्षता में जांच कमेटी बनाई। इस घटना को प्रशासन ने छिपाने का पूरा प्रयास किया था किंतु एक प्रेस फोटोग्राफर ने शासन के इस मंसूबे को पूरा नहीं होने दिया। उस समय एक बड़े अखबार में छायाकार रहे एनएन मुखर्जी के पास ही थी जो दुर्घटनास्थल पर मौजूद थे और अपनी जान की परवाह न कर छायांकन किया था हालांकि उनके इस काम से तत्कालीन प्रदेश सरकार काफी नाराज थी।
दुर्घटना व बाद में शवों को जलाए जाने की सचित्र खबर छपने से सरकार की काफी किरकिरी हो रही थी जिससे मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत छायाकार एनएन मुखर्जी से काफी नाराज थे। हादसे के बाद पंडित नेहरू ने नेताओं और अतिविशिष्ट लोगों से स्नान पर्वों पर कुम्भ न जाने की अपील की थी। उस घटना के बाद से कुम्भ में कभी भगदड़ नहीं मची थी।
2013 में स्टेशन पर भगदड़ में 36 लोगों की मौत
ऐसी ही एक दुखद दुर्घटना 2013 भी हुई थी। कुंभ मेला के दौरान 10 फरवरी दिन रविवार को मौनी अमावस्या का स्नान था। स्नान-दान करने के बाद श्रद्धालु अपने घर जाने के लिए रेलवे स्टेशनों व बस अड्डों पर पहुंच रहे थे। प्रयागराज जंक्शन (इलाहाबाद) पर बड़ी संख्या में यात्री पहुंच चुके थे। सभी प्लेटफार्म ठसाठस भरे हुए थे। ओवरब्रिजों पर भी भारी भीड़ थी। शाम के सात बज रहे थे तभी प्लेटफार्म छह की ओर जाने वाली फुट ओवरब्रिज की सीढिय़ों पर अचानक भगदड़ मची।
धक्का-मुक्की में कई लोग ओवरब्रिज से नीचे जा गिरे जबकि कई लोगों को भीड़ ने कुचल दिया। इस हादसे की वजह एक अनाउंसमेंट बनी थी। दरअसल, यात्री संगम से वापस घर लौट रहे थे। सभी प्रयागराज रेलवे स्टेशन पर थे। जिस प्लेटफॉर्म में ट्रेन आनी थी वहां सभी इंतजार कर रहे थे। लेकिन अचानक अनाउंसमेंट हुई कि ट्रेन दूससे प्लेटफॉर्म पर खड़ी है और खुलने वाली है। फिर क्या था, लोग दूसरे प्लेटफॉर्म की ओर दौड़े। फुट ओवरब्रिज से होते हुए लोग जा रहे थे। इतने में ब्रिज पर लोड इतना ज्यादा बढ़ गया कि पुल नीचे गिर गया और 36 लोग इस हादसे में मारे गए। जबकि 50 गंभीर रूप से घायलों को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। दुर्घटना में मरने वालों में उत्तर प्रदेश के अलावा बिहार, दिल्ली, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश आदि के यात्री थे। रेलवे ने उस हादसे से सबक लेकर भीड़ प्रबंधन पर काफी ध्यान दिया है।