मुंबई। Azaad Movie Review: इंसान और जानवर की दोस्ती की कमाल फिल्म बनाने से चूके अभिषेक, अमन और राशा अभी तैयार नहीं। फिल्म बनाना अगर शरबत बनाने जैसा हो तो एक बोतल में थोड़ी सी ‘बेताब’, थोडी सी ‘मर्द’ और एक चुटकी ‘लगान’ भी मिलाकर डाली जाए तो 1920 के कालखंड में बनी फिल्म ‘आजाद’ तैयार होगी। के पी सक्सेना की कोई 24 साल पहले ‘लगान’ के लिए रची बोली को आधार बनाकर लिखे गए संवादों से सांसें पाती फिल्म ‘आजाद’ से दो नए सितारे हिंदी सिनेमा में पदार्पण कर रहे हैं। एक हैं अमन देवगन, जिनकी मां नीलम से शायद उनके भाई अजय देवगन ने कभी अपने भांजे को हीरो बनाने का वादा रक्षा बंधन पर कर दिया होगा और दूसरी हैं राशा थडानी (या ठडानी) जिनके पिता अनिल थडानी देश के नंबर वन फिल्म डिस्ट्रीब्यूटर हैं और जिनकी मां रवीना टंडन की अदाओं पर लोग अब तक फिदा हैं।
फिल्म ‘आजाद’ की एंड क्रेडिट्स में एक नाम संजय भारद्वाज का भी नजर आता है, जिनकी जिम्मेदारी फिल्म में स्क्रिप्ट का अनुवाद करने की रही। मतलब कि मूलत: ये हिंदी में महसूस की गई पटकथा नहीं है। मालूम ये भी होता है कि फिल्म ‘आजाद’ को देश का दिल समझे जाने वाले मध्य प्रदेश में शूट किया गया है और इसकी कहानी भी आजाद भारत के वहीं कहीं के एक इलाके में सेट की गई है। कहानी में चूंकि बागी भी हैं। चंबल की खंतियां और खाइयां भी हैं और लड़के को मोड़ा और लडकी को मोड़ी कहने का संयोग भी है तो माना जा सकता है कि ये फिल्म बुंदेलखंड की कहानी कहती है। ‘आजाद’ यहां उस घोड़े का नाम है जो समय से पहले जन्मा। शरीर से कमजोर था तो अंग्रेज अफसर ने उसे मार देने का मन बनाया लेकिन अपना हीरो विक्रम सिंह उर्फ ठाकुर उर्फ सरदार उसे अपनी मेहनत की कमाई से खरीद लाता है।
दोनों की दोस्ती परवान चढ़ती है। आजाद बड़ा होकर एक ऐसा घोड़ा बनता है जो है तो मारवाड़ी लेकिन अपनी चाल, ढाल, फुर्ती और चपलता से कतई अरबी लगता है। मालिक और उसके सहायक के बीच की समन्वयता यानी ट्यूनिंग कैसी होनी चाहिए, उसे श्याम नारायण पाण्डेय ने क्या ही खूबसूरती से अपनी कविता में लिखा है, राणा की पुतली फिरी नहीं तब तक चेतक मुड़ जाता था..! यहां कहानी इसी चेतक के किस्से से ही शुरू होती है। नानी का दुलारा नवासा आजाद को देखता है तो देखता ही रह जाता है। उसे बागी सरदार के इस घोड़े से प्यार हो जाता है। और, इसी बीच उसे इलाके के जमींदार की बेटी से भी प्यार हो जाता है। कौन सा प्यार है, और कौन सा आकर्षण, इसे सुलझाने में फिल्म गुजर जाती है। आजाद का मालिक ठाकुर है। पहले किसान था। अब बागी है। नानी के नवासे का नाम गोविंद है। उसकी प्रेमिका नाम राधा, रुक्मिणी कुछ भी हो सकता था लेकिन लिखने वालों को त्रेया और द्वापर का संगम कराना, अर्ध कुंभ की दौड़ वाले क्लाइमेक्स की फिल्म में अच्छा लगा होगा, सो जमींदार की लड़की सबने मिलकर रखा, जानकी! गोविंद की प्रेमिका जानकी समझने की मति में ही इस फिल्म का असल मर्म छिपा है। आजाद दारू पीता है। ठाकुर के सिवा किसी दूसरे को अपनी काठी पर सवार नहीं होने देता।
बागी ऐसे हैं कि 1920 में रात होते ही इक्कीसवीं सदी के म्यूजिक पर बना आइटम नंबर देखते हैं। और, हीरो ऐसा कि सपने में पहली बार अपनी प्रेमिका ‘जानकी’ को देखता है तो वह उसे आइटम नंबर करती दिखती है। किसी नवोदित अभिनेत्री का ऐसा फूहड़ परिचय (इंट्रो) किसी दूसरी हिंदी फिल्म में पहले भी रहा होगा, याद नहीं पड़ता। रवीना की पहली फिल्म ‘पत्थर के फूल’ इस बीच मुझे खूब याद आती रही। और, रवीना पर फिल्माए गए ‘टिप टिप बरसा पानी’ जैसे तमाम कामुक गाने शायद फिल्म ‘आजाद’ बनाने वालों को जरूर याद आते रहे होंगे। नहीं तो, पहली ही फिल्म में राशा से ‘उई अम्मा’ कराने का तुक फिल्म की कहानी के हिसाब से कहीं नहीं है।
राशा और अमन दोनों को समय से पहले लॉन्च कर दिया गया है, शायद बस इसलिए कि दूसरे स्टार किड्स जो हाल फिलहाल में लॉन्च हुए, उनमें से कोई भी बड़े परदे पर अपने बूते पूरी फिल्म चलाने लायक है ही नहीं। ऐसा करिश्मा हिंदी सिनेमा में आखिरी बार साल 2000 में फिल्म ‘कहो ना प्यार है’ में हुआ था। फिल्म ‘आजाद’ अभिषेक कपूर की बतौर निर्देशक सातवीं फिल्म है। लेकिन, हिंदी सिनेमा के दर्शकों के बीच वह अब भी ट्विंकल खन्ना के एक्स बॉयफ्रेंड गट्टू के नाम से पहचाने जाते हैं। अजय देवगन के भांजे को लेकर ये फिल्म बनाने वाले गट्टू अभिनेता जीतेंद्र के भांजे हैं। जीतेंद्र की बहन मधुबाला के बेटे।
अभिषेक के सिनेमा पर पश्चिम सिनेमा के तगड़ा असर साफ देखा जा सकता है। ‘आजाद’ में वह ‘बेताब’ और ‘मर्द’ जैसी नकचढ़ी हीरोइन गढ़ना चाहते हैं लेकिन फिर उनका दिल ‘लगान’ की गौरी पर भी मचल जाता है। फिल्म का हीरो कौन है, इसे लेकर अभिषेक काफी कन्फ्यूज दिखते हैं। दो तिहाई फिल्म अजय देवगन खींचते हैं और फिर जब बारी अमन की आती है तो ढप्पा हो जाता है। फिल्म के संवाद बहुत अटपटे हैं। खड़ी बोली से अवधी मिश्रित भोजपुरी और भोजपुरी मिश्रित बुंदेलखंडी में भटकती रहने वाली इस फिल्म में एक डायलेक्ट कोच भी है, ये जानकर और हैरानी होती है।