बेंगलुरू/लखनऊ। कानून महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए बनाए गए हैं, लेकिन इनका दुरुपयोग होने की कई घटनाएं सामने आ रही हैं। साथ ही, भारतीय न्यायिक प्रक्रिया की धीमी गति और लंबी सुनवाई भी एक गंभीर समस्या बन चुकी है। इसी व्यवस्था का शिकार हुए बेंगलुरु के अतुल सुभाष की दर्दनाक कहानी किसी की भी आंखें नम कर सकती है। बेंगलुरु के मन्जुनाथ लेआउट में एक त्रासदी ने पूरे समाज को झकझोर कर रख दिया। एक निजी कंपनी में सीनियर एग्जीक्यूटिव के तौर पर काम करने वाले 34 वर्षीय अतुल सुभाष अपने घर में मृत पाए गए। उन्होंने कथित तौर पर आत्महत्या कर ली। यह घटना न केवल एक व्यक्ति की व्यक्तिगत लड़ाई का अंत थी, बल्कि हमारे समाज में मानसिक स्वास्थ्य और घरेलू विवादों की गंभीरता को भी उजागर करती है।
शादी करके बरर्बाद हो गये अतुल सुभाष
अतुल सुभाष की शादी उत्तर प्रदेश के जौनपुर की निकिता सिंघानिया से हुई थी। शादी के कुछ समय बाद निकिता अचानक बेंगलुरु छोड़कर जौनपुर लौट गई और पति समेत ससुरालवालों पर दहेज उत्पीडऩ और घरेलू हिंसा का केस दर्ज करा दिया। अतुल ने अपनी मौत से पहले 24 पन्नों का सुसाइड नोट लिखा और डेढ़ घंटे का एक वीडियो बनाया, जिसमें उन्होंने अपनी पीड़ा को बताया। उन्होंने अपने सुसाइड नोट और वीडियो में पत्नी निकिता सिंघानिया, सास निशा सिंघानिया, साला अनुराग सिंघानिया उर्फ पीयूष, और चचेरे ससुर सुशील सिंघानिया को अपनी मौत का जिम्मेदार ठहराया।
ससुराल वालों ने पैसे ऐंठने के लिए साजिश रची
अतुल ने खुलासा किया कि उनकी पत्नी और ससुरालवालों ने पैसे ऐंठने के लिए साजिश रची। उनके खिलाफ दहेज, घरेलू हिंसा, हत्या का प्रयास, और अननेचुरल सेक्स जैसे गंभीर झूठे आरोप लगाए गए। इन मामलों के तहत अतुल और उनके परिवार को बार-बार कोर्ट जाना पड़ा। अतुल ने बताया कि अब तक 120 से अधिक बार केस की सुनवाई हुई और 40 बार उन्हें बेंगलुरु से जौनपुर जाना पड़ा। उन्होंने कहा कि अधिकतर तारीखों पर कोर्ट में कोई काम नहीं होता, कभी जज नहीं होते, तो कभी हड़ताल होती।
तलाक के बदले हर महीने दो लाख रुपये गुजारा भत्ता मांगा
अतुल के अनुसार, उनकी पत्नी ने तलाक के बदले हर महीने दो लाख रुपये गुजारा भत्ता मांगा। साथ ही, उनके बच्चे को उनसे दूर कर दिया गया। उन्होंने यह भी बताया कि जौनपुर की प्रिंसिपल फैमिली कोर्ट जज ने उन पर तीन करोड़ रुपये की एलिमनी देने का दबाव बनाया। अतुल ने दावा किया कि कोर्ट में पेशकार को रिश्वत देनी पड़ती है। जब उन्होंने रिश्वत देने से इनकार किया तो उनके खिलाफ हर महीने 80 हजार रुपये मेंटिनेंस देने का आदेश जारी कर दिया गया।
आत्महत्या से पहले न्यायपालिका से की अपील
मरने से पहले अतुल ने जूडिशियरी से अपील की कि उनके माता-पिता को परेशान न किया जाए। उन्होंने पत्नी से गुजारिश की कि उनके बच्चे की परवरिश उनके माता-पिता को करने दी जाए। साथ ही, उन्होंने अपनी अस्थियों को तब तक विसर्जित न करने की हिदायत दी जब तक न्याय न मिल जाए। उन्होंने कहा कि अगर न्याय नहीं मिलता है तो मेरी मौत के बाद मेरी अस्थियां कोर्ट के सामने गटर में बहा देना।
न्याय होना अभी बाकी है
अतुल ने अपने घर के भीतर एक प्लेकार्ड लगाया, जिस पर लिखा था, न्याय बाकी है। यह वाक्य उनके दर्द और निराशा का प्रतीक था। उन्होंने अपनी व्यथा और अंतर्मन की स्थिति को स्पष्ट रूप से व्यक्त करते हुए अपने सुसाइड नोट को ईमेल और एक एनजीओ के व्हाट्सएप ग्रुप में शेयर किया। अतुल ने यह भी सुनिश्चित किया कि उनके घर में महत्वपूर्ण जानकारियां साफ-साफ लिखी गई हों, ताकि उनके पीछे कोई सवाल न बचे।
क्या कहती है पुलिस?
पुलिस ने इस मामले को अप्राकृतिक मृत्यु के रूप में दर्ज किया है और अतुल की पत्नी और उनके परिवार के खिलाफ उकसावे का मामला दर्ज किया गया है। पुलिस इस घटना की गहराई से जांच कर रही है और हर पहलू को ध्यान में रखते हुए न्याय सुनिश्चित करने का प्रयास कर रही है।
कानून के दुरूपयोग पर भी सवाल
अतुल का यह कदम इस बात को दर्शाता है कि कैसे मानसिक दबाव और समाज का असंवेदनशील रवैया एक व्यक्ति को निराशा की इस हद तक ले जा सकता है। अतुल सुभाष की कहानी भारतीय न्याय व्यवस्था और महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा के लिए बनाए गए कानूनों के दुरुपयोग पर गंभीर सवाल उठाती है। यह घटना सोचने पर मजबूर करती है कि क्या वाकई कानून का सही इस्तेमाल हो रहा है, या फिर कुछ लोग इसे दूसरों को नुकसान पहुंचाने का माध्यम बना रहे हैं? यह कहानी न केवल न्याय प्रणाली पर, बल्कि हमारे समाज की नैतिकता और मानवता पर भी सवाल खड़े करती है। यह घटना केवल अतुल की व्यक्तिगत त्रासदी नहीं है, बल्कि हमारे समाज के लिए एक चेतावनी भी है। यदि आप या आपका कोई परिचित मानसिक तनाव से जूझ रहा है, तो कृपया सहायता लें। कोई भी जीवन इतना छोटा नहीं होता कि उसे खो दिया जाए। आइए, एक ऐसा समाज बनाएं, जहां हर आवाज सुनी जाए।