होली पर संकल्प लें टीबी मुक्त भारत बनाने का : डॉ. सूर्यकान्त
टीबी के खिलाफ जनांदोलन के जरिये अपने गाँव, शहर और कार्यस्थल को बनाएं टीबी मुक्त
विश्व क्षय रोग दिवस (24 मार्च) पर विशेष
लखनऊ। देश को टीबी मुक्त बनाने के लिए अब एक सशक्त जनांदोलन की सख्त जरूरत है क्योंकि इस गंभीर बीमारी को तभी ख़त्म किया जा सकता है जब हर कोई अपनी जिम्मेदारी समझे और जो जहाँ है वहां सबसे पहले टीबी को ख़त्म करने की पहल शुरू कर दे। देश ने कोरोना और पोलियो जैसी कई गंभीर बीमारियों को ख़त्म करके यह साबित कर दिया है कि अगर हर कोई ठान ले तो किसी भी बीमारी को आसानी से ख़त्म किया जा सकता है। हम अपने कार्यस्थल, स्कूल-कालेज, फैक्ट्री, गाँव, आस-पड़ोस आदि को टीबी मुक्त करने की ठान लें तो सफलता सौ फीसद तय है। विश्व क्षय रोग दिवस (24 मार्च) की पूर्व संध्या पर यह कहना है नार्थ जोन टीबी टास्क फ़ोर्स के चेयरमैन और केजीएमयू के रेस्परेटरी मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष डॉ. सूर्यकान्त का।
डॉ. सूर्यकान्त का कहना है कि हम अपने आस-पास एक ऐसा सशक्त प्लेटफार्म तैयार करें जिसमें विशेषज्ञों, विभागीय अधिकारियों के साथ ही पुरुषों, महिलाओं, बच्चों, ट्रांसजेंडर, धर्मगुरुओं, स्कूल-कालेज के प्रिंसिपल, स्टूडेंट, टीबी चैम्पियन, निक्षय मित्र, श्रमिकों, पंचायतों, नगरीय क्षेत्रों के पार्षदों और सहयोगी संस्थाओं आदि को शामिल किया जाए। यह समूह यदि अपने-अपने क्षेत्र को टीबी मुक्त करने को तत्पर हो जाएँ तो यह पहल देश को टीबी मुक्त बनाने में निश्चित रूप से मील का पत्थर साबित होगी। तो आइये इस होली के पर्व पर संकल्प लें कि टीबी को देश से ख़त्म करने में सहयोग को हम-सभी मिलकर काम करने को तैयार हैं।
डॉ. सूर्यकान्त का कहना है कि स्वास्थ्य विभाग के पास टीबी की स्क्रीनिंग, एक्टिव केस फाइंडिंग, एकीकृत निक्षय दिवस और बेहतर जाँच से लेकर गुणवत्तापूर्ण इलाज की पूरी व्यवस्था है। जरूरत है तो बस टीबी के लक्षण जैसे- दो हफ्ते से अधिक समय से खांसी आ रही हो, बुखार बना रहता हो, वजन गिर रहा हो, रात में पसीना आता हो और भूख न लग रही हो तो बिना समय गंवाएं निकटतम स्वास्थ्य इकाई पर पहुंचकर जांच कराएं। शीघ्र जांच ही खुद के साथ ही करीब 15 निकट सम्पर्क के लोगों को भी टीबी से बचाएगी, क्योंकि एक टीबी मरीज अनजाने में साल भर में करीब 15 लोगों में टीबी का संक्रमण फैला सकता है। इस तरह हम टीबी की श्रृंखला को तोड़ने में कामयाब होते हुए टीबी को ख़त्म कर दुनिया में अपने देश का नाम रोशन कर सकते हैं।
टीबी के मरीजों में यह विश्वास जगाना भी जनमानस का काम है कि इस बीमारी का समुचित इलाज संभव है। यह बीमारी किसी को भी हो सकती है, इसलिए बिना कोई भेदभाव किये हमें मरीज का पूरा साथ देना है ताकि इलाज के दौरान उसका मनोबल बना रहे। यह भावनात्मक सहयोग दवाओं को भी असरकारक बनाएगा। अक्सर यह देखने में आता है कि लोग टीबी से ग्रसित महिलाओं और बच्चों के साथ भेदभाव करते हैं, जो कि बिल्कुल गलत है, सभी से अपील है कि ऐसा कदापि न करें।