कविता : दफ्तरों के कर्मचारियों पर एक छोटी सी कविता

अल्पज्ञानी अंधेरा की कोशिश है राजनीति से उजाले को लगा दूँ ग्रहणपर उसे क्या मालूम, उसका तो नाम ही है उजालाचमक दमक है जिसकी पहचानसंग रहे जो उसकी भी बन जाये जानपर अंधेरा अल्पज्ञानी जो ठहराउसको है बस यही गुमान, उसके अंदर है सर्वग्य ज्ञानउजाले की है क्या विसातजब तक वह है तभी तक है […]

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