दर्शनशास्त्र विभाग ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय को बनाया सिरमौर : डॉ. वेदपति मिश्र, आई.ए.एस.

लखनऊ। यह अत्यंत ही हर्ष और गौरव का विषय है कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय का दर्शनशास्त्र विभाग अपनी ज्ञान-वैदुष्य-परम्परा को समग्र विश्व में अक्षुण्ण बनाये रखने में पूर्णतया सफल रहा है । पूर्व के गुरूजनों -प्रो. रानाडे, प्रो. एस.एस.राय, प्रो. संगमलाल पाण्डेय,प्रो. सेठ, प्रो. रामलाल सिंह, प्रो. डी .एन.द्विवेदी, प्रो. जटाशंकर, प्रो .एच. एस. उपाध्याय आदि ने विभाग को अब तक जिस ऊँचाई पर पहुँचाया था, उस ऊँचाई को आगे बढ़ाते हुए,वर्तमान विभागाध्यक्ष प्रो. ऋषिकान्त पाण्डेय ने विभाग की गरिमा और महिमा को नभ-विस्तृत कर दिया है । वस्तुतः, डॉ. पाण्डेय का कर्तृत्व और व्यक्तित्व किसी परिचय का मोहताज नहीं है ।वर्तमान में प्रोफ़ेसर ऋषिकान्त पाण्डेय इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दर्शन शास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष हैं और वह अपने वैदुष्य, ज्ञान -वैविध्य ,पांडित्य , कर्मशीलता और सम्प्रेषणीय अध्यापन-कला से , सम्पूर्ण दर्शन-जगत के विश्वाकाश में “ ध्रुव-तारा “ की भाँति अभिराजित हैं ।

मुझे यह जानकर अतीव प्रसन्नता हुई है कि अभी कुछ ही दिन पूर्व, कश्मीर में आयोजित अखिल भारतीय दर्शन परिषद के 68 वें अधिवेशन में इलाहाबाद विश्वविद्यालय को, दर्शन जगत में देश का सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय होने का का ख़िताब प्राप्त हुआ है । यह महनीय उपलब्धि विशेषकर प्रयागराजवासियों के लिए , इस विश्वविद्यालय में दर्शन का अध्ययन करने वाले पुराछात्रों एवं वर्तमान छात्रों के लिए , इलाहाबाद विश्वविद्यालय के किसी भी फेकेल्टी और किसी भी विभाग में पढ़ने वाले छात्रों के लिए तथा देशवासियों के लिए भी एक अतिद्वयी इतिहास की सर्जना और घटना के रूप में अत्यंत ही गौरवास्पद क्षण की अनुभूति का विषय है । यहाँ यह उद्धृत कर देना भी उचित होगा कि प्रोफ़ेसर ऋषिकान्त पाण्डेय का , विभाग और विश्वविद्यालय के प्रति समर्पण, उनका अथक परिश्रम, उनका शोधपरक चिन्तन और शिष्यों के प्रति आत्मीय-लगाव आदि ही इस महान उपलब्धि के कारक तत्व हैं ।यही कारण है कि आज यह विश्वविद्यालय देश का सिरमौर बन सका है ।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग की गरिमा, महिमा और विश्रुति के सम्बन्ध में,मैं अपने जीवन का वह सुखद क्षण भी आज आपसे साझा करने के लिए उत्सुक हो रहा हूँ कि जब मैं श्रीलंका में लगभग २०१५ में बौद्ध-दर्शन पर आयोजित एक कार्यक्रम में अपने विचार व्यक्त कर रहा था और मेरे परिचय में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के दर्शन विभाग से अधीत होना बताया गया था तो विश्व के विभिन्न देशों से आये हुए विद्वानों द्वारा उस विचार को अत्यंत ही गम्भीरता से लिया गया था और उस कार्यक्रम में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के दर्शनशास्त्र के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफ़ेसर पार्टर ने मुझसे हो रहे वार्तालाप के दौरान जब प्रो. ऋषिकान्त पाण्डेय जी का नाम अत्यंत ही आदरपूर्वक लिया तो मेरी ख़ुशी का पारावार उमड़ पड़ा । उस समय विश्वविद्यालय के दर्शन विभाग की गरिमाऔर विश्व विश्रुति का कितना सुखद बोध हुआ होगा, यह आप सहज ही महसूस कर सकते हैं ।

मेरा अपना विचार है कि प्रयागराज अनादि काल से ही धर्म, दर्शन और अध्यात्म का केंद्र रहा है और यहाँ संगम में प्रवाहमान “ त्रिवेणी “उसकी अधिष्ठात्री देवी के रूप में सम्पूजित हैं । वर्तमान में, त्रिवेणी -तट पर प्रत्यक्षतः , गाङ्गयमुन संगम की कल-कल-कल्लोलवन्तिनी-वारिधारा उत्तालतंरगाघात करती है ।

यहाँ पहुँचने पर प्रभु श्री राम भी सीता जी से कहते हैं-

क्वचित् च कृष्णोऽरगभूषणेव,
भस्मागंरागातनुरीश्वरस्य ।
पश्यानवद्याङि्गविभाति गंगा,
भिन्नप्रवाहायमुनातरंगै :॥

यहाँ, गंगा-यमुना-सरस्वती के स्वरूप में पूजित माँ त्रिवेणी की तीसरी वारिधारा “ ज्ञान-चाक्षुषी-विद्या “ बनकर इलाहाबाद विश्वविद्यालय के रूप में भरद्वाज ऋषि के आश्रम के समीप , विश्वविद्यालय के गुरूजनों और विद्यार्थियों के रूप में प्रकट और प्रवाहित होती हैं । इसप्रकार, संगम में गुह्य सरस्वती इलाहाबाद विश्वविद्यालय की ज्ञान-चाक्षुषी- वारिधारा के रूप में प्रकट होती हैं और सम्पूर्ण विश्व को अभिसिंचित करती हैं ।

आज मैं पुनः अतीत और वर्तमान का चिन्तन करते हुए , सुखद क्षण की अनुभूति कर रहा हूँ और विभाग की वर्तमान उपलब्धि पर एक सुखद गौरव का बोध करते हुए इस विश्वविद्यालय के कुलपति और दर्शनशास्त्र विभाग के यशस्वी विभागाध्यक्ष प्रो. पाण्डेय जी के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ ।

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