लखनऊ। पोषण मनुष्य के लिए बेहद आवश्यक है क्योंकि यह शरीर को स्वस्थ रखने के साथ रोगों के प्रति शरीर में प्रतिरोधक क्षमता भी विकसित करता है। पोषण के महत्व के प्रति जागरूकता के उद्देश्य से प्रत्येक वर्ष राष्ट्रीय पोषण सप्ताह 1 से 7 सितंबर तक मनाया जाता है। हाल ही में विश्व भर में फैली कोविड महामारी के बाद पोषण का महत्व समझना और भी आवश्यक हो गया है।
पोषण की अहमियत के प्रति जागरूकता के लिए बहुत सी स्वैच्छिक संस्थाएं, समूह और भारत सरकार लोगों को जागरूक करने के लिए वेबिनार, गोष्ठियां और अभियान आयोजित कर रहे हैं। राष्ट्रीय पोषण सप्ताह हमें याद दिलाता है कि संतुलित आहार लेने से हमें स्वस्थ रहने में मदद मिलती है। राष्ट्रीय पोषण मिशन 2023 में, सरकार का लक्ष्य शिशुओं, गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाली माताओं और किशोरों को पर्याप्त पोषण प्रदान करके भारत को कुपोषण मुक्त बनाना है। इसका उद्देश्य बौनापन, अल्पपोषण, जन्म के समय कम वजन और एनीमिया को कम करना है।
पोषण के महत्व को समझाने के लिए डॉक्टरों द्वारा भी उचित और पोषक भोजन की सलाह देते हैं। सही चीजें न खाने से कई स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो सकती हैं, जैसे उचित शारीरिक विकास न होना, सीखने में परेशानी होना और बार बार बीमार पड़ना।
बचपन से ही बच्चों सही आहार बच्चों को जीवन में आगे बढ़ने, विकास करने, सीखने, खेलने, भाग लेने और समाज में योगदान करने के लिए सामर्थ्य प्रदान करता है। एक माँ को गर्भधारण से पहले ही स्वस्थ भोजन की आदतें शुरू कर देनी चाहिए, फोलिक एसिड, आयरन, कैल्शियम और प्रोटीन की सटीक मात्रा से बच्चे का जन्म के समय स्वस्थ वजन और रक्त पैरामीटर प्राप्त होंगे।
एक माँ अपने आहार में आयरन और प्रोटीन के समृद्ध स्रोत के रूप में गुड़ और मूंगफली का मिश्रण खा सकती है। उदाहरण के लिए, कुछ सब्जियों की पत्तियाँ जिन्हें पकाने के दौरान फेंक दिया जाता है, वास्तव में आयरन से भरपूर होती हैं। गाजर और पत्तागोभी के पत्ते, गोभी के दांथल की सब्जी, मूली के पत्तों की भुजिया आदि।
कंचन खुराना
सीनियर क्लिनिकल न्यूट्रिशनिस्ट,फोर्टिस अस्पताल, ग्रेटर नोएडा, बच्चे के जन्म से पोषण के प्रति जागरूक रहने का महत्व समझते हुए कहती हैं, “बच्चे के जीवन के पहले 1000 दिनों में सही और पोषक चीजें खाना बेहद महत्वपूर्ण है। इसमें गर्भावस्था के 270 दिन और जन्म के बाद पहले 365 दिन, और फिर दूसरे वर्ष के 365 दिन शामिल हैं। बच्चों को पहले 6 महीनों तक केवल उनकी मां का दूध दिया जाना चाहिए और उसके बाद, उन्हें अन्य खाद्य पदार्थ जैसे ठोस आहार, हरी सब्जियाँ, फल और सब्जियाँ देना चाहिए। जंक फूड और मीठे पेय से दूरी बनाए रखना जरूरी है। 6 महीने के बाद बच्चे को ठोस आहार देना शुरू करें जिसमें कद्दू का सूप, पालक का सूप और धीरे-धीरे गेहूं और अन्य बाजरा जैसे बाजरा, जौ, रागी आदि शामिल होना चाहिए। इससे बच्चे के पर्याप्त शारीरिक और मानसिक विकास में मदद मिलती है। इससे बच्चे में बेहतर प्रतिरक्षा विकसित होती है और एसपीडी (सेंसरी प्रोसेसिंग डिसऑर्डर) को रोका जा सकता है।