संविधान बदलने की साज़िश के खिलाफ़ अल्पसंख्यक कांग्रेस इकट्ठा करेगा 5 लाख हस्ताक्षर- शाहनवाज़ आलम

1 से 6 सितंबर तक चलेगा ‘मेरा संविधान – मेरा स्वाभीमान’ कार्यक्रम

दलित, वकीलों, कांशीराम आवास कॉलोनियों पर रहेगा फोकस

लखनऊ। उत्तर प्रदेश अल्पसंख्यक कांग्रेस संविधान बदलने की कोशिशों के खिलाफ़ दलित और मुस्लिम समुदाय के बीच 5 लाख हस्ताक्षर इकट्ठा करेगा। इसके लिए 1 सितंबर से 6 सितंबर तक ‘मेरा संविधान – मेरा स्वाभीमान’ अभियान चलेगा।

अल्पसंख्यक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज़ आलम ने जारी प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि 21 अगस्त को प्रदेश भर से पीएम के आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष बिबेक देबरॉय द्वारा संविधान बदलने की मांग के साथ लिखे गए लेख पर स्वतः संज्ञान लेने के लिए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को ज्ञापन भेजा गया था। अब 1 से 6 सितंबर तक भाजपा सरकार द्वारा संविधान बदलने की साजिशों की खिलाफ़ लोगों का हस्ताक्षर लिया जाएगा। पूरे प्रदेश से 5 लाख हस्ताक्षर का टार्गेट है जिसे संविधान के संरक्षक सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जी को भेजा जायेगा।

शाहनवाज़ आलम ने बताया कि हस्ताक्षर अभियान के साथ ही पर्चा भी बाँटा जाएगा। जिसमें बताया गया है कि संविधान लागू होने के 4 दिन बाद ही 30 नवम्बर 1949 को आरएसएस ने अपने मुखपत्र ऑर्गनाइज़र में सबको बराबरी का दर्जा देने वाले संविधान की जगह मनुस्मृति लागू करने की मांग की थी। पर्चे में यह भी बताया गया है कि अटल बिहारी बाजपेयी सरकार ने भी संविधान बदलने की कोशिश के तहत संविधान समीक्षा आयोग बनाया था लेकिन पूर्ण बहुमत न होने के कारण पीछे हट गयी थी। पर्चे में दलितों की ज़मीन गैर दलितों द्वारा खरीदने पर लगी रोक को योगी सरकार द्वारा शहरी विकास के नाम पर खत्म कर देने की भी बात कही गयी है।

शाहनवाज़ आलम ने बताया कि इससे पहले अल्पसंख्यक कांग्रेस द्वारा दलित आबादी में स्थित 3 हज़ार चाय की दुकानों पर संविधान चर्चा का कार्यक्रम किया गया था। वहीं 7 अगस्त से 13 अगस्त तक ‘जय जवाहर – जय भीम’ अभियान भी चला था। जिसमें 7 लाख से ज़्यादा दलित परिवारों तक अल्पसंख्यक कांग्रेस के कार्यकर्ता पहुंचे थे।

मेरा संविधान मेरा स्वाभीमान अभियान के तहत भी मस्जिदों के बाहर पर्चा बांटने, कचहरियों में दलित वकीलों से सम्पर्क करने और कांशीराम आवास कालोनियों पर ज़्यादा फोकस रहेगा। इस दौरान यह समझाया जाएगा कि 2014 और 2019 में भाजपा को कुल क्रमशः 31 और 37 प्रतिशत वोट मिले थे। जबकि यूपी में दलित और मुस्लिम ही अकेले 41 प्रतिशत हैं।

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