होली विशेष : सतयुग में भक्त प्रहलाद की भक्ति का प्रमाण है एरच का डिकौली पर्वत
– बुंदेलखंड में एरच से हुई थी होली की शुरुआत,खंभे को फाड़कर प्रकट हुए थे भगवान नरसिंह
झांसी। जिले मुख्यालय से करीब 80 किमी दूर स्थित एरच कस्बा सतयुग में एरिकच्छ के नाम से प्रसिद्ध था और दैत्यराज हिरण्यकश्यप की राजधानी थी। माना जाता है कि ये वही जगह है, जहां से होली की शुरुआत हुई थी। इसी जगह पर होलिका का दहन हुआ था।
जिस रंगों के त्यौहार होली को पूरा देश हर्षोल्लास से मनाता है। बहुत कम लोग जानते हैं कि इस त्योहार की शुरुआत कहां से हुई थी? यदि नहीं जानते हैं तो हम आपको बताते हैं। होली के त्योहार की शुरुआत बुंदेलखंड के झांसी जिले के एरच से हुई है। ये कभी हिरण्यकश्यप की राजधानी हुआ करती थी।
यहां पर उसकी बहन होलिका भक्त प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर आग में बैठी थी। जिसमें वरदान ही होलिका के लिए अभिशाप बन गया और भक्त प्रह्लाद को जलाने के चक्कर में होलिका जल गई थी लेकिन प्रहलाद बच गए थे। सतयुग में भक्त प्रहलाद की भक्ति का प्रमाण प्रस्तुत करते हुए एरच का डिकौली पर्वत व प्रह्लाद दौ (डिकौली पर्वत जहां से भक्त प्रह्लाद को मारने के लिए फेका गया था व प्रह्लाद दौ-बेतवा नदी का गहरा भाग) आज भी उस भक्ति की गाथा सुनाते हुए अडिग खड़े हैं। भगवान विष्णु ने नरसिंह के रूप में अवतार लिया। गौधूली बेला यानी न दिन न रात में अपने नाखूनों से डिकौली स्थित मंदिर की दहलीज पर हिरण्यकश्यप का वध कर दिया था। कहा जाता है तभी से धूल और कीचड़ की होली के पर्व की शुरुआत हुई थी। शास्त्रों और पुराणों के मुताबिक वर्तमान में झांसी जिले का एरच कस्बा सतयुग में एरिकच्छ के नाम से प्रसिद्ध था। यह एरिकच्छ दैत्यराज हिरण्यकश्यप की राजधानी थी। हिरण्यकश्यप को सृष्टिकर्ता ब्रम्हा से ये वरदान मिला था कि वो न तो दिन में मरेगा और न ही रात में, न उसे इंसान मार पाएगा और न ही जानवर, इसी वरदान को प्राप्त करने के बाद खुद को अमर समझने वाला हिरण्यकश्यप निरंकुश हो गया।
लेकिन इस राक्षसराज के घर जन्म हुआ भक्तराज प्रहलाद का। भक्त प्रहलाद की नारायण भक्ति से परेशान होकर हिरण्यकश्यप ने उन्हें मरवाने के कई प्रयास किए फिर भी प्रहलाद बच गए। आखिरकार हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को डिकोली पर्वत से नीचे फिंकवा दिया। विद्वान इतिहासकार राज्यमंत्री हरगोविंद कुशवाहा बताते हैं कि डिकोली पर्वत और जिस स्थान पर बेतवा नदी में प्रहलाद गिरे, वो प्रह्लाद दौ आज भी मौजूद हैं। इसका जिक्र श्रीमद् भागवत पुराण के 9वें स्कन्ध में और झांसी गजेटियर पेज 339 ए, 357 में मिलता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार हिरण्यकश्यप के आदेशानुसार उसकी बहन होलिका ने प्रहलाद को मारने की ठानी। होलिका के पास एक ऐसी वरदानी चुनरी थी, जिसे पहनने पर वो आग के बीच बैठ सकती थी और जिसको ओढ़कर उसके ऊपर आग का कोई असर नहीं पड़ता था। होलिका वही चुनरी ओढ़ प्रहलाद को गोद में लेकर आग में बैठ गई, लेकिन भक्ति के आगे वरदान भी अभिशाप बन गया। भगवान की माया का असर ये हुआ कि हवा चली और चुनरी होलिका के ऊपर से उड़कर प्रहलाद पर आ गई। इस तरह प्रहलाद फिर बच गए और होलिका जल गई।
इसके तुरंत बाद भगवान विष्णु ने भक्त प्रह्लाद को बचाने के लिए महल का खंभा फाड़कर नरसिंह के रूप में अवतार लिया और गौधूली बेला यानी न दिन न रात में अपने नाखूनों से डिकौली स्थित मंदिर की दहलीज पर हिरण्यकश्यप का वध कर दिया। बुंदेलखंड ही नहीं बल्कि पूरे देश में होली के एक दिन पहले होलिका दहन की परंपरा चली आ रही है। एरच में आज भी इस परंपरा को स्थानीय निवासी फाग और गानों के साथ हर्षोल्लास से मनाते हैं।