नई दिल्ली: कोरोना (atmosphere) की जानकारी लेने के लिए Aditya-L1 श्रीहरिकोटा से रवाना कर दिया गया है, जो 6 दिनों तक धरती के चारों तरफ चक्कर लगाएगा. इस दौरान पांच ऑर्बिट मैन्यूवर होंगे, ताकि सही गति मिल सके. आदित्य-एल1 15 लाख किलोमीटर की यात्रा करेगा. यह चांद की दूरी से करीब चार गुना ज्यादा है. जहां पर L1 प्वाइंट होता है. यह प्वाइंट सूरज और धरती के बीच में स्थित होता है. Aditya-L1 मिशन ऑब्जर्वेटरी क्लास मिशन है. यह पहली भारतीय अंतरिक्ष आधारित ऑब्जर्वेटरी (वेधशाला) है. अभी तक हम सूरज की स्टडी धरती पर लगाई दूरबीनों से कर रहे हैं. ये दूरबीनें कोडईकनाल या नैनीताल के ARIES जैसी जगहों पर लगी हैं, मगर हमारे पास स्पेस में टेलीस्कोप नहीं हैं. धरती की दूरबीन से हम सूरज की दिख रही सतह ही देख पाते हैं, सूरज का ऐटमॉस्फियर नहीं दिखता, जो धरती के वातावरण से काफी अलग है. सूरज के आउटर ऐटमॉस्फियर को कोरोना कहा जाता है. वह बेहद गर्म होता है. कोरोना गर्म क्यों होता है, इसकी पूरी जानकारी नहीं है. कोरोना को पूर्ण सूर्यग्रहण के दौरान ही देखा जा सकता है. अब हम कोरोनाग्राफ जैसा एक टेलिस्कोप VELC इस मिशन के साथ भेज रहे हैं, जो कोरोना पर 24 घंटे निगाह रखेगा और ग्राउंड स्टेशन पर रोज 1,440 फोटो भेजेगा.
Aditya-L1 के उपकरण देंगे यह जानकारी
Aditya-L1 में सात पेलोड यानी उपकरण लगे हैं. इनके जरिए फोटोस्फेयर, क्रोमोस्फेयर और सूरज की सबसे बाहरी परतों यानी कोरोना की स्टडी करेंगे. इसके लिए इलेक्ट्रोमैग्नेटिक और पार्टिकल डिटेक्टर्स का उपयोग किया जाएगा. चार पेलोड्स सूरज को सीधे तौर पर देखेंगे और तीन पेलोड्स लैगरेंज पॉइंट 1 पर पार्टिकल्स और फील्ड्स की स्टडी करेंगे. इनके जरिए कोरोना यानी बाहरी परत की गर्मी, सूरज की बाहरी परत से उठने वाले सौर तूफानों की गति और उसके टेंपरेचर के पैटर्न को समझेगा. सूरज के वातावरण की जानकारी रेकॉर्ड करेगा. पृथ्वी पर पड़ने वाली सूरज की किरणों के असर का पता लगाएगा.
सोलर अल्ट्रा-वॉयलेट इमेजिंग टेलिस्कोप (सूट): यह सूर्य के फोटोस्फेयर और क्रोमोस्फेयर की तस्वीरें लेगा.
सोलेक्स और हेल1ओएस: सूर्य की एक्सरे स्टडी करेगा.
एसपेक्स और प्लाज्मा एनालाइजर: इनका काम सौर पवन की स्टडी और इसकी एनर्जी को समझना है.
मैग्नेटोमीटर (मैग): एल1 के आसपास अंतर-ग्रहीय चुंबकीय क्षेत्र को मापेगा.
सौर मिशन इस तरह बढ़ेगा आगे
इसरो का PSLV-C57 रॉकेट ‘आदित्य-L1’ को धरती की निचली ऑर्बिट में पहुंचाएगा. फिर इस मिशन की ऑर्बिट को ज्यादा वलयाकार (elliptical) बनाया जाएगा और फिर ऑन-बोर्ड प्रपल्शन के जरिये इसे L1 पॉइंट की ओर धकेला जाएगा. चार-पांच बार ऑर्बिट में उछाल के बाद एल1 की ओर बढ़ते हुए यह मिशन पृथ्वी के गुरुत्व बल के दायरे से बाहर चला जाएगा. इसके बाद क्रूज फेज शुरू होगा और यान एल1 के इर्दगिर्द बड़े हालो ऑर्बिट में पहुंचेगा. यह सबसे मुश्किल फेज़ है, क्योंकि यहां गति को कंट्रोल नहीं किया गया तो यह सीधे सूर्य की ओर चला जाएगा और खाक हो जाएगा. अपनी मंजिल तक पहुंचने में आदित्य – एल1 को चार महीने यानी 125 दिन लगेंगे.
इसलिये है सूरज की स्टडी की जरूरत
सूरज पृथ्वी के सबसे नजदीक का तारा है. सूरज से बहुत ज्यादा एनर्जी निकलती है. वहां से बेहद गर्म सौर लपटें उठती रहती हैं. अगर इस तरह की लपटों की दिशा पृथ्वी की तरफ हो जाए, तो यहां धरती के पास के वातावरण में बहुत असामान्य चीजें हो सकती हैं. तमाम स्पेसक्राफ्ट, सैटलाइट और कम्युनिकेशन सिस्टम खराब हो सकते हैं. ऐसी घटनाओं की समय रहते सूचना हासिल करना जरूरी होता है.
अब तक इन देशों ने भेजे सौर मिशन
अब तक सूर्य पर कुल 22 मिशन भेजे जा चुके हैं. मिशन पूरा करने वाले देशों में अमेरिका, जर्मनी, यूरोपियन स्पेस एजेंसी शामिल हैं. सूरज पर सबसे ज्यादा 14 मिशन अमेरिकी एजेंसी नासा ने भेजे हैं. यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने साल 1994 में पहला सूर्य मिशन भेजा, तो उसने नासा का साथ लिया। नासा के पार्कर सोलर प्रोब ने सबसे ज्यादा काम किया है. यह सूर्य के सबसे करीब पहुंचने वाला एकमात्र अंतरिक्षयान है.