लखनऊ। उत्तर प्रदेश विधानसभा और विधान परिषद सचिवालय में हुई भर्ती जांच के घेरे में आ गई है. उत्तर प्रदेश विधानसभा और विधानमंडल में इन पदों पर हुई भर्तियों में अनियमितता के आरोप लगाते हुए याचिका दाखिल की गई थी. इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में विशेष अपील दाखिल की गई थी. इस याचिका की सुनवाई के दौरान बेंच ने का धांधलियों का स्वत संज्ञान लिया. सीबीआई जांच के आदेश जारी कर दिए हैं.सीबीआई जांच के आदेश से भर्ती से जुड़े विधानसभा के तमाम बड़े लोगों पर आंच आना तय माना जा रहा है. शिकायतकर्ता का आरोप है कि चयन प्रक्रिया में नियमों को दरकिनार कर बाहरी भर्ती एजेंसियों को तरजीह दी गई. नियमों में मनमाने संशोधन भी किए गए. हाईकोर्ट ने धांधली के इस मामले को जनहित याचिका के रूप में दर्ज करने का आदेश दिया है. सीबीआई से शुरुआती जांच रिपोर्ट 6 हफ्ते में मांगी है. साथ ही शिकायतकर्ता की तरफ से पेश किए गए मूल रिकॉर्ड सील कवर में रखवा दिए हैं. हाईकोर्ट ने विशेष अपील और जनहित याचिका को नवंबर के पहले हफ्ते में सूचीबद्ध करने का आदेश दिया है.
90 पदों पर हुई थी भर्ती
सूत्रों के मुताबिक वर्ष 2020-21 के बीच जब विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित थे तब विधानसभा में 90 पदों पर भर्ती हुई थी । जिसमें 57 ARO के थे और 15 पद RO के शामिल थे । इसके अलावा सुरक्षा गार्ड और रिपोर्टर के भी पद थे।
वही विधान परिषद में उस वक्त सभापति रमेश यादव थे और उनके समय में 100 पदों पर भर्तियां निकली थी। विधानसभा के अधिकारियों ने इन्हीं भर्तियों में खेल किया था ।उस वक्त भी इस परीक्षा में शामिल हुए छात्र हाई कोर्ट गए थे उन्होंने हाईकोर्ट में धांधली के तमाम सबूत भी पेश किए थे, लेकिन तब कोर्ट में मामला खत्म हो गया था। आरोप तो यहां तक लगे थे कि उस वक्त के विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने अपने करीबी को नियम विरुद्ध जाकर महत्वपूर्ण पद पर विधानपरिषद में तैनाती दिला दी थी। तो वही विधान परिषद से जुड़े अफसर ने अपने करीबी रिश्तेदारों को विधानसभा में अलग-अलग पदों पर तैनात करा दिया था। उस वक्त सरकार के एक मंत्री के रिश्तेदार को भी इसी भर्ती में नौकरी मिल गई थी। वहीं विधानसभा के भी प्रमुख सचिव के कुछ करीबियों को तब विधान परिषद में तैनाती मिली थी।
उत्तराखंड विधानसभा में हुआ था भर्ती घोटाला
इससे पहले उत्तराखंड विधानसभा में बैकडोर भर्ती घोटाला (Uttarakhand recruitment scam) सामने आया था. इसमें अनियमितता पाए जाने के बाद 228 कर्मियों को हटा दिया गया था. फैसले के खिलाफ आरोपी सुप्रीम कोर्ट भी गए थे, लेकिन याचिका खारिज कर दी गई.उत्तराखंड विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी ने विधानसभा सचिवालय से 228 कर्मियों को बर्खास्त किया था, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने मुहर लगाई थी. स्पीकर ने उत्तराखंड विधानसभा भर्ती की जांच समिति की रिपोर्ट के बाद यह निर्णय किया था. डीके कोटिया समिति ने भर्ती में भारी अनियमितताएं पाई थीं. उत्तराखंड चयन आयोग की कई अन्य भर्तियों में भी अनियमितताएं पाए जाने के बाद सीएम पुष्कर सिंह धामी की सरकार ने भर्ती परीक्षाओं को रद्द कर दिया था. इसके बाद नए सिरे से एग्जाम आयोजित करने का फैसला लिया गया था. जिससे पारदर्शिता बनी रहे।
उत्तर प्रदेश विधानसभा की नौकरियों में होने वाली भर्ती में घोटाला कोई नई बात नहीं है। प्रदीप दुबे की सर परस्ती में पिछले कई दशक से वहां पर भर्तीयां की जा रही है अगर जांच होगी निष्पक्षता के साथ तो प्रदीप दुबे का जेल जाना है इसके अलावा उनके बहुत सारे गुर्गे भी फसेंगे।
डॉ संदीप पहल, आरटीआई एक्टिंबिस्ट, उत्तर प्रदेश