गुरु तेग बहादुर साहिब के पावन शहीदी दिवस पर उनके वंशजों को किया गया सम्मानित
लखनऊ : धर्म एवं राष्ट्र की रक्षा के प्रतीक परमपूज्य गुरु तेग बहादुर साहिब के पावन शहीदी दिवस पर विभिन्न कार्यक्रम संघ कार्यालय- भारती भवन राजेन्द्र नगर लखनऊ में आयोजित हुआ।
गुरुतेग बहादुर जी का शहीदी दिवस कार्यक्रम में गुरुतेग बहादुर जी के साथ अपना बलिदान देने वाले भाई सतीदास एवं भाई मतीदास के वंशजो को आयोजन समिति द्वारा सम्मानित किया गया। इसके साथ ही समाज सेवा के क्षेत्र में उत्तम कार्य करने वाले विभिन्न मत-पंथों के गणमान्यों को भी सम्मानित किया गया। कार्यक्रम स्थल पर ही श्रीगुरुतेग बहादर जी के जीवन पर आधारित एक प्रदर्शनी लगायी गई। साथ ही उनके साहित्यों का वितरण भी किया गया। इस अवसर पर गुरु तेगबहादर जी के साथ बलिदान होने वाले भाई सतीदास और मतीदास जी के वंशजों का भी सम्मान किया गया।
कार्यक्रम के मुख्यवक्ता श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महासचिव श्री चम्पत राय जी ने कहा, जब गुरु तेग बहादुर जी का शहीदी दिवस का आयोजन के लिए मुझे आमंत्रित किया गया। मेरा मन भाव से भर गया। उन्होंने कहा हम जब पढ़ते थे तो कुछ चित्र रखते थे, उनमें स्वामी विवेकानंद, महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी महाराज और गुरु तेग बहादुर जी भी थे। चित्र वही पास होते हैं जिसके चेहरे से लगाव होता है। वो बात याद आती है कि जब मिट्टी की और समाज की रक्षा करने के लिए हमारे बीच जन्म लेने वाले गुरु जी जिनमें साक्षात प्रभु ने जन्म लिया और अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया।
दिल्ली का गुरुद्वारा अपनी कहानी कहता है। उसको बार-बार दोहराना नहीं है। गुरु जी जिस अवस्था में बैठे रहते थे वो सामान्य नहीं था। ऐसा लगता था, जैसे परमात्मा से जुड़े हों। अन्यथा कोई भी प्राणी तलवार का भय ज़रूर खा जायेगा। परन्तु सिख धर्म के 9वें गुरु अपने पुत्र से प्रेरणा लेकर अपने को शहीद कर हम सबको जीने का तरीका दे गये। बड़े काम करने हैं तो बड़े कष्ट भी सहने पड़ते हैं। गुरुजी का जब बलिदान हुआ। वर्ष 1675 में उसी समय छत्रपति शिवाजी महाराज ने हिन्दवी स्वराज की स्थापना की। उनके बलिदान का कालखंड अब करीब 350 साल का हो रहा है। इतने वर्षों के बाद भी हम उनका शहीदी दिवस मना रहे हैं। यह सामान्य बात नहीं है। उनका पूरा परिवार धर्म के लिए बलिदान हो गया। 27 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा बीती है। यह दोनों तिथियां निकट आ गई हैं। यह संयोग है। यह भगवान की भक्ति की श्रेष्ठता ही है। हम भी देश और धर्म की रक्षा के लिए कुछ कर सकें, कुछ दे सकें यही ईश्वर से कामना है।
इसके बाद कार्यक्रम को आगे बढ़ते हुए लेखक कवि व धार्मिक शिक्षण के प्रणेता सरदार ब्रिजेंद्रपाल सिंह ने कहा कि यह सौभाग्य की बात है कि हम उस शख्सियत को याद कर रहे हैं, जिनके विषय में गुरु हरगोविंद सिंह जी ने कहा था कि यह अपनी कुर्बानी देगा और धर्म की रक्षा करेगा। उन्होंने कहा कि गुरु जी अपने जीवन में एक बार मुस्कुराए थे। वे अपने माता पिता की 6वीं संतान थे। उनके पिता ने उनके जन्म के समय उनको प्रणाम किया। बुद्धिजीवियों के पूछने पर उनके पिता गुरु हरगोविंद सिंह बोले, यह शहादत की चादर बिछाकर हिंद की रक्षा करेगा। उनका बचपन का नाम त्यागमल रखा गया था। 13 साल की उम्र में जब करतारपुर की जंग में उनकी बहादुरी देखकर उनका नाम तेगमल से तेग बहादुर कर दिया था। उन्होंने अंतिम समय में कहा था कि मैं शहीद होकर अपनी कौम और धर्म की आत्मिक और शारीरिक मजबूती चाहूंगा।
वहीं, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अवध प्रान्त कार्यकारिणी सदस्य प्रशान्त भाटिया ने बताया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अवध प्रान्त ने भी अपने सभी 26 सांगठनिक जिलों में श्रीगुरु तेगबहादुर जी के शहीदी दिवस के कार्यक्रम आयोजित किया। सभी कार्यक्रम अपने तय समय पर सुनिश्चित स्थानों पर सम्पन्न हुये।
कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्र प्रचारक अनिल जी, प्रांत प्रचारक कौशल जी, सह क्षेत्र प्रचार प्रमुख मनोजकांत जी, पूर्व कैबिनेट मंत्री डॉ. महेंद्र सिंह, सरदार सतपालसिंह मीत – प्रवक्ता लखनऊ गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी, हरमिन्दर सिंह टीटू – सचिव गुरुद्वारा नाका हिंडोला, सुरेन्द्र सिंह बक्शी – अध्यक्ष सिक्ख हिन्द मिशन, निर्मल सिंह – अध्यक्ष अलमबाग गुरूद्वारा, हरजीत सिंह गिन्नी – उपाध्यक्ष गुरुद्वारा आलमबाग, मनमोहन सिंह मोड़ी-अध्यक्ष गुरुद्वारा चंदर नगर, लखविन्दर सिंह, परमिंदर सिंह, गुरुद्वारा इंद्रा नगर, गुरूद्वारा गोमती नगर, गुरुद्वारा आशियाना, गुरुद्वारा सराय पाठक गणेश गंज आदि समस्त गुरुद्वारों से पदाधिकारी, साथ ही श्री गुरु तेग बहादुर शहीदी दिवस आयोजन समिति के पदाधिकारी प्रशान्त भाटिया, सुनील कालरा, आनन्द शेखर सिंह, सचिन आदि उपस्थित रहे।