Chhath Puja 2023 Date and time: आइए जानते हैं कि 2023 में छठ पूजा कब है व छठ पूजा 2023 की तारीख व मुहूर्त.

धार्मिक डेस्क: Chhath Puja 2023 Date and time: आइए जानते हैं कि 2023 में छठ पूजा कब है व छठ पूजा 2023 की तारीख व मुहूर्त.

छठ पर्व या छठ पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाया जाने वाला लोकपर्व है. इसे सूर्य षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है. यह पर्व दिवाली के 6 दिन बाद मनाया जाता है. यह पर्व मुख्य रूप से उत्तर भारत के राज्य बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. छठ पूजा में सूर्य देव और छठी मैया की पूजा व उन्हें अर्घ्य देने का विधान है. पिछले कुछ वर्षों में छठ पूजा को लोकपर्व के रूप में एक खास पहचान मिली है. यही वजह है कि अब इस पर्व की रौनक बिहार-झारखंड के अलावा देश के कई हिस्सों में भी देखने को मिलती है.

छठ पर सूर्य देव और छठी मैया की पूजा का विधान
छठ पूजा में सूर्य देव की पूजा की जाती है और उन्हें अर्घ्य दिया जाता है। सूर्य प्रत्यक्ष रूप में दिखाई देने वाले देवता है, जो पृथ्वी पर सभी प्राणियों के जीवन का आधार हैं. सूर्य देव के साथ-साथ छठ पर छठी मैया की पूजा का भी विधान है. पौराणिक मान्यता के अनुसार छठी मैया या षष्ठी माता संतानों की रक्षा करती हैं और उन्हें दीर्घायु प्रदान करती हैं.

शास्त्रों में षष्ठी देवी को ब्रह्मा जी की मानस पुत्री भी कहा गया है. पुराणों में इन्हें मां कात्यायनी भी कहा गया है, जिनकी पूजा नवरात्रि में षष्ठी तिथि पर होती है. षष्ठी देवी को ही बिहार-झारखंड में स्थानीय भाषा में छठ मैया कहा गया है.

छठ पूजा उत्सव
छठ पूजा चार दिनों तक चलने वाला लोक पर्व है। यह चार दिवसीय उत्सव है, जिसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से होती है और कार्तिक शुक्ल सप्तमी को इस पर्व का समापन होता है. इस बार 19 नवंबर 2023 (संध्या अर्घ्य) सूर्यास्त का समय 17:26:0420 नवंबर (उषा अर्घ्य) सूर्योदय का समय :06:47:15

नहाय खाये (पहला दिन)
यह छठ पूजा का पहला दिन है. नहाय खाय से मतलब है कि इस दिन स्नान के बाद घर की साफ-सफाई की जाती है और मन को तामसिक प्रवृत्ति से बचाने के लिए शाकाहारी भोजन किया जाता है.

खरना (दूसरा दिन)
खरना, छठ पूजा का दूसरा दिन है. खरना का मतलब पूरे दिन के उपवास से है. इस दिन व्रत रखने वाला व्यक्ति जल की एक बूंद तक ग्रहण नहीं करता है. संध्या के समय गुड़ की खीर, घी लगी हुई रोटी और फलों का सेवन करती हैं, साथ ही घर के बाकि सदस्यों को इसे प्रसाद के तौर पर दिया जाता है.

संध्या अर्घ्य (तीसरा दिन)
छठ पर्व के तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को संध्या के समय सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है. शाम को बांस की टोकरी में फलों, ठेकुआ, चावल के लड्डू आदि से अर्घ्य का सूप सजाया जाता है, जिसके बाद व्रति अपने परिवार के साथ सूर्य को अर्घ्य देती हैं. अर्घ्य के समय सूर्य देव को जल और दूध चढ़ाया जाता है और प्रसाद भरे सूप से छठी मैया की पूजा की जाती है. सूर्य देव की उपासना के बाद रात्रि में छठी माता के गीत गाए जाते हैं और व्रत कथा सुनी जाती है.

उषा अर्घ्य (चौथा दिन)
छठ पर्व के अंतिम दिन सुबह के समय सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है. इस दिन सुबह सूर्योदय से पहले नदी के घाट पर पहुंचकर उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं. इसके बाद छठ माता से संतान की रक्षा और पूरे परिवार की सुख शांति का वर मांगा जाता है. पूजा के बाद व्रति कच्चे दूध का शरबत पीकर और थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत को पूरा करती हैं, जिसे पारण या परना कहा जाता है.

छठ पूजा विधि
छठ पूजा से पहले निम्न सामग्री जुटा लें और फिर सूर्य देव को विधि विधान से अर्घ्य दें.

● बांस की 3 बड़ी टोकरी, बांस या पीतल के बने 3 सूप, थाली, दूध और ग्लास
● चावल, लाल सिंदूर, दीपक, नारियल, हल्दी, गन्ना, सुथनी, सब्जी और शकरकंदी
● नाशपती, बड़ा नींबू, शहद, पान, साबुत सुपारी, कैराव, कपूर, चंदन और मिठाई
● प्रसाद के रूप में ठेकुआ, मालपुआ, खीर-पुड़ी, सूजी का हलवा, चावल के बने लड्डू लें.

अर्घ्य देने की विधि- बांस की टोकरी में उपरोक्त सामग्री रखें। सूर्य को अर्घ्य देते समय सारा प्रसाद सूप में रखें और सूप में ही दीपक जलाएं. फिर नदी में उतरकर सूर्य देव को अर्घ्य दें.

छठ पूजा से जुड़ी पौराणिक कथा
छठ पर्व पर छठी माता की पूजा की जाती है, जिसका उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण में भी मिलता है. एक कथा के अनुसार प्रथम मनु स्वायम्भुव के पुत्र राजा प्रियव्रत को कोई संतान नहीं थी. इस वजह से वे दुःखी रहते थे। महर्षि कश्यप ने राजा से पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करने को कहा. महर्षि की आज्ञा अनुसार राजा ने यज्ञ कराया. इसके बाद महारानी मालिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया लेकिन दुर्भाग्य से वह शिशु मृत पैदा हुआ. इस बात से राजा और अन्य परिजन बेहद दुःखी थे. तभी आकाश से एक विमान उतरा जिसमें माता षष्ठी विराजमान थीं. जब राजा ने उनसे प्रार्थना कि तब उन्होंने अपना परिचय देते हुए कहा कि मैं ब्रह्मा की मानस पुत्री षष्ठी देवी हूं. मैं विश्व के सभी बालकों की रक्षा करती हूं और निःसंतानों को संतान प्राप्ति का वरदान देती हूं.

इसके बाद देवी ने मृत शिशु को आशीष देते हुए हाथ लगाया, जिससे वह जीवित हो गया. देवी की इस कृपा से राजा बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने षष्ठी देवी की आराधना की. ऐसी मान्‍यता है कि इसके बाद ही धीरे-धीरे हर ओर इस पूजा का प्रसार हो गया.

छठ पूजा का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
छठ पूजा धार्मिक और सांस्कृतिक आस्था का लोकपर्व है. यही एक मात्र ऐसा त्यौहार है जिसमें सूर्य देव का पूजन कर उन्हें अर्घ्य दिया जाता है. हिन्दू धर्म में सूर्य की उपासना का विशेष महत्व है. वे ही एक ऐसे देवता हैं जिन्हें प्रत्यक्ष रूप से देखा जाता है. वेदों में सूर्य देव को जगत की आत्मा कहा जाता है. सूर्य के प्रकाश में कई रोगों को नष्ट करने की क्षमता पाई जाती है। सूर्य के शुभ प्रभाव से व्यक्ति को आरोग्य, तेज और आत्मविश्वास की प्राप्ति होती है। वैदिक ज्योतिष में सूर्य को आत्मा, पिता, पूर्वज, मान-सम्मान और उच्च सरकारी सेवा का कारक कहा गया है. छठ पूजा पर सूर्य देव और छठी माता के पूजन से व्यक्ति को संतान, सुख और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। सांस्कृतिक रूप से छठ पर्व की सबसे बड़ी विशेषता है इस पर्व की सादगी, पवित्रता और प्रकृति के प्रति प्रेम.

खगोलीय और ज्योतिषीय दृष्टि से छठ पर्व का महत्व
वैज्ञानिक और ज्योतिषीय दृष्टि से भी छठ पर्व का बड़ा महत्व है. कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि एक विशेष खगोलीय अवसर, जिस समय सूर्य धरती के दक्षिणी गोलार्ध में स्थित रहता है. इस दौरान सूर्य की पराबैंगनी किरणें पृथ्वी पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्रित हो जाती है. इन हानिकारक किरणों का सीधा असर लोगों की आंख, पेट व त्वचा पर पड़ता है. छठ पर्व पर सूर्य देव की उपासना व अर्घ्य देने से पराबैंगनी किरणें मनुष्य को हानि न पहुंचाए, इस वजह से सूर्य पूजा का महत्व बढ़ जाता है.

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