मुरादाबाद में देसी अंडों का ऐसा घिनौना खेल पकड़ा गया है, जिसने सबसे बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है-
हमारी थाली में आखिर पहुंच क्या रहा है?
खाद्य सुरक्षा विभाग की टीम जब देर रात बरबरा मझरा में दाखिल हुई, तो सामने ऐसा मंजर था जिसने कई और सवाल जगा दिए—
❓ क्या वाकई देसी अंडे खाने वाले लोग देसी की जगह जहरीला सिंदूर खा रहे थे?
❓ कितने दिनों से ये मिलावटखोर सफेद अंडों को रंगकर हमारी सेहत से व्यापार कर रहे थे?
❓ कौन हैं वो सप्लायर, जो इस नकली देसी अंडे को मुरादाबाद, संभल और आसपास के जिलों में धड़ल्ले से सप्लाई कर रहे थे?
❓ और सबसे बड़ा सवाल—यह पूरी चेन बिना पकड़ में आए इतने दिनों तक आखिर चली कैसे?
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धीमी रोशनी, रात का सन्नाटा… और मिलावट का अड्डा
छापेमारी के दौरान गोदाम में 45,360 रंगे हुए अंडे पड़े मिले—
लाल सिंदूर से पोते हुए, देसी के नाम पर बेचे जाने को तैयार।
साथ ही 35,640 सफेद अंडे—अगले “देसी” बैच के लिए।
सवाल उठता है-
❓ क्या यह सिर्फ एक गोदाम है, या पीछे कोई बड़ा नेटवर्क छिपा है?
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जहर का सौदा;घटिया सिंदूर, लेड और मिलावट की साजिश
अफसरों ने बताया कि अंडे रंगने में जो सिंदूर इस्तेमाल होता था, उसमें लेड (सीसा) पाया जाता है;
एक ऐसा ज़हर, जो धीरे–धीरे शरीर में घुलकर सेहत को खामोशी से बर्बाद करता है।
तो क्या इन मिलावटखोरों को यह पता नहीं था?
या फिर-
❓ लाभ के लालच में लोगों की ज़िंदगी का मोल खत्म हो चुका है?
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पंद्रह दिन की निगरानी—और फिर खुली परतें
एक अधिकारी की नज़र, बाजार में मिले एक “अजीब चमकीले देसी अंडे” पर पड़ी…
यही शक, पंद्रह दिन की छानबीन-और आखिर खुला यह पूरा रैकेट।
तो अब यह भी सवाल उठता है-
❓ क्या ऐसी और फैक्ट्रियाँ भी चल रही हैं, जिनका अभी तक कोई सुराग नहीं?
❓ क्या खाद्य विभाग की और कड़ी कार्रवाई होगी, या यह मामला केवल एक-दो गिरफ्तारियों तक सिमट जाएगा?
मुरादाबाद का यह खुलासा सिर्फ एक केस नहीं,
यह उस बड़ी बीमारी की निशानी है, मुनाफे की भूख में सेहत से खिलवाड़।
और असली सवाल अभी भी हवा में तैर रहा है!
❓ हम क्या खा रहे हैं, और किस पर भरोसा करें?
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