श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को अब विदेश में रहने वाले श्रीराम भक्त भी दे सकते हैं चंदा, एफसीआरए की मिली मंजूरी
अजय श्रीवास्तव
आयोध्या: विदेश में रहने वाले श्रीराम भक्त भी अब भगवन श्रीराम के मंदिर निर्माण में दिल खोलकर दान कर सकते हैं, क्योंकि भारत सरकार ने एफसीआरए की मंजूरी दे दी है। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने बताया कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राम मंदिर निर्माण के लिए विदेशी स्रोत से दान की अनुमति प्रदान कर दी है।
आई जानते हैं क्या है एफसीआरए
विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (Foreign Contribution (Regulation) Act – FCRA) : विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम यानी FCRA क़ानून की धारा 5 के मुताबिक केंद्र सरकार किसी भी एनजीओ को राजनीतिक प्रकृति का घोषित कर सकती है और उसे विदेशों से मिलने वाले दान अथवा चंदे को इस्तेमाल करने से रोक सकती है। गृह मंत्रालय के मुताबिक, साल 2016 से 2020 के बीच, इसने 6,600 से अधिक एनजीओ के एफसीआरए लाइसेंस को रद्द किया है और लगभग 264 एनजीओ के लाइसेंस को निलंबित किया है। इसी क़ानून से जुड़ा एक ताजा मामला मदर टेरेसा की संस्था मिशनरीज ऑफ चैरिटी सुर्खियों में है।
दरअसल साल 1976 में केंद्र सरकार द्वारा विदेशी फ़ंडिंग की निगरानी के लिए विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम यानी FCRA क़ानून बनाया गया था। साल 2010 में इसमें कुछ संशोधन किया गया। साल 2015 में गृह मंत्रालय ने इससे जुड़े कुछ नए नियम जारी किए, जिसके तहत विदेशों से चंदा/दान प्राप्त कर रहे एनजीओ को यह वचन देना होता है कि विदेशी फंड से भारत की संप्रभुता और अखंडता या उसके किसी भी देश के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों पर कोई भी प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा और सांप्रदायिक सौहार्द नहीं बिगड़ेगा। इन संस्थाओं को अपना बैंक खाता किसी ऐसे राष्ट्रीयकृत या निजी बैंकों में खोलना होता है, जिसपर सुरक्षा एजेंसिया किसी भी समय पर नजर डाल सकती हैं। सितंबर 2020 में भारत सरकार ने इसमें फिर से कुछ संशोधन करते हुए FCRA कानून को और कड़ा कर दिया।
होता क्या है कि कभी-कभी विदेशी योगदान से संचालित कुछ संस्थाएं विदेशी राष्ट्रों के इशारे पर भारत में नीतियों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती हैं। ऐसी स्थिति में, विदेशों से मिलने वाले चंदे/दान को रेगुलेट करना जरूरी हो जाता है। हालांकि, इसका यह मतलब नहीं कि सारी संस्थाएं ही ऐसा करती हों। यह कानून विदेशी दान लेने वाले सभी संगठनों, समूहों और गैर-सरकारी संस्थाओं पर लागू होता है। इन संस्थाओं के लिए एफसीआरए के तहत पंजीकरण यानी रजिस्ट्रेशन करवाना जरूरी होता है। शुरुआत में यह पंजीकरण पांच वर्षों के लिए होता है, और उसके बाद अगर वह एनजीओ सभी मानदंडों को पूरा करती है तो उसे रिन्यू करवाए जाने का प्रावधान है। पंजीकृत संस्थाएं सामाजिक, शैक्षिक, धार्मिक, आर्थिक और सांस्कृतिक प्रयोजनों के लिए विदेशों से योगदान ले सकते हैं। इनके लिए सालाना आयकर रिटर्न भरना अनिवार्य है। सीबीआई के मुताबिक, कुल 22 लाख गैर सरकारी संगठनों में से केवल 10 फ़ीसदी संगठन ही अपना सालाना आयकर रिटर्न भरते हैं। अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि इनका रेगुलेशन जरूरी क्यों हैं।
गौरतलब है कि इस कानून के तहत कुछ व्यक्तियों और संस्थाओं को विदेशी चंदा अथवा दान लेने से प्रतिबंधित भी किया गया है। इनमें विधानमंडलों के सदस्य, राजनीतिक दल, सरकारी अधिकारी, जज और मीडिया के लोग शामिल हैं। हालांकि, 2017 में इस बात की छूट दे दी गई कि राजनीतिक दल विदेशी कंपनियों की भारतीय सहायक कंपनियों या ऐसी विदेशी कंपनियां, जिसमें भारतीयों का शेयर 50% या उससे अधिक हो, उनसे फंड ले सकते हैं। कुछ खास मामलों में किसी उद्देश्य विशेष के लिए सरकार की पूर्व अनुमति लेकर विदेशी चंदा अथवा दान लिया जा सकता है।
अब सवाल यह उठता है कि किसी भी संगठन का एफसीआरए लाइसेंस कब रद्द अथवा निलंबित किया जा सकता है? दरअसल जब गृह मंत्रालय को किसी संगठन की गतिविधियों के बारे में प्रतिकूल जानकारी मिलती है तो शुरू में 180 दिनों के लिए उसका एफसीआरए लाइसेंस निलंबित किया जा सकता है। यानी जब तक अंतिम फैसला नहीं लिया जाता, संस्था कोई भी विदेशी चंदा नहीं ले सकती। साथ ही, वो संस्था सरकार की परमिशन के बगैर अपने बैंक खाते में पड़े 25% से ज्यादा रकम का इस्तेमाल नहीं कर सकती। इस तरह प्रतिकूल जानकारी मिलने के आधार पर सरकार ने कई गैर सरकारी संगठनों पर कार्यवाही की है और इससे जुड़े आंकड़े मैंने कार्यक्रम के शुरुआत में ही आपको बताए हैं।