धार्मिक डेस्क। Chhath Puja 27 October 2025: भारत को त्यौहारों का देश कहा जाता है क्योंकि यहाँ होली, दिवाली, रक्षाबंधन, भाईदूज आदि का अपना महत्व है। इन्ही पर्वों में से एक है छठ पूजा जो सनातन धर्म की सबसे शुभ एवं प्रसिद्ध पूजा है। छठ पूजा बिहारवासियों के लिए विशेष महत्व रखता है और इस दिन भगवान सूर्य को प्रसन्न करने के लिए पूजा की जाती है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, छठ पूजा को कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से शुरू होकर कार्तिक शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि तक किया जाता है। ग्रेगोरिन कलेंडर के अनुसार, छठ पूजा सामान्य रूप से हर साल अक्टूबर या नवंबर के महीने में आता है। इस पर्व को सूर्य षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है।
छठ पूजा 2025 की तिथि एवं मुहूर्त
छठ पूजा 27 अक्टूबर 2025
छठ पूजा के दिन सुर्योदय का समय : 06.29 बजे सुबह
छठ पूजा के दिन सूर्यास्त का समय : 05.52 बजे शाम
षष्ठी तिथि प्रारंभ सुबह- 27 अक्टूबर 2025 को सुबह 06.04 बजे
षष्ठी तिथि समाप्त – 28 अक्टूबर 2025 को सुबह 07.59 बजे
इस दिन मनाया जाएगा चैती छठ
छठ पूजा के त्यौहार को चार दिन तक मनाया जाता है और इस दौरान महिलाओं द्वारा 36 घंटों का उपवास किया जाता है। छठ पूजा के प्रत्येक दिन का अपना महत्व हैं जो इस प्रकार है।
नहाय खाये
नहाय खाये छठ पूजा का प्रथम दिन होता है। इस दिन स्नान करने के बाद घर की साफ-सफाई की जाती है और शाकाहारी भोजन का सेवन किया जाता है।
खरना
छठ पूजा का दूसरा दिन होता है खरना। इस दिन व्रतधारी द्वारा निर्जला व्रत का पालन किया जाता है। संध्याकाल में भक्तजन गुड़ की खीर, घी की रोटी और फलों का सेवन करते हैं, साथ ही परिवार के सदस्यों को इसे प्रसाद के रूप में दिया जाता है।
संध्या अर्घ्य
छठ पर्व के तीसरे दिन भगवान सूर्य को अर्घ्य देने का विधान है। सूर्य देव को अर्घ्य के समय जल और दूध अर्पित किया जाता है और छठी मैया की प्रसाद भरे सूप से पूजा की जाती है। सूर्य देव की आराधना के पश्चात रात में छठी मैया की व्रत कथा सुनी जाती है।
उषा अर्घ्य
छठ पर्व के अंतिम दिन प्रात:काल में सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है। इस दिन भक्त सूर्योदय से पूर्व नदी के घाट पर पहुंचकर उदित होते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इसके बाद छठ मैया से संतान की रक्षा और परिवार की सुख-शांति की कामना की जाती है। इस पूजा के उपरांत व्रती कच्चे दूध का शरबत पीकर और प्रसाद ग्रहण करके व्रत खोलते हैं, जिसे पारण या परना कहते है।
छठ पूजा के नियम
छठ पूजा के समय पूजा एवं रीति-रिवाज़ों को सम्पन्न करने की एक विशिष्ट विधि होती है। इस पूजा के दौरान भक्त को अनेक नियमों को ध्यान में रखना चाहिए।
छठ पूजा का व्रत करने वाले जातक को स्वच्छता और साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
छठ पूजा के दौरान होने वाले अनुष्ठान केवन विवाहित महिला द्वारा किए जा सकते हैं।
इस दौरान परिवार के पुरुषों और स्त्रियों के लिए रात्रि के समय फर्श पर सोने का भी नियम है।
छठ पूजा के प्रसाद का प्रयोग करने से पहले बर्तनों को भली प्रकार से साफ करना चाहिए।
स्वच्छता का ध्यान रखते हुए छठ पूजा के दौरान घर के भीतर एक अस्थायी रसोई का निर्माण किया जाता है।
छठ पूजा के दौरान घर पर थेकुआ नामक मिठाई बनाई जाती है।
विवाहित स्त्रियों को विशेष धार्मिक अनुष्ठानों का पालन करना होता है जैसे, इस दौरान वे स्वयं द्वारा पकाया गया भोजन ग्रहण नहीं कर सकती हैं और सिलाई किये हुए कपड़े भी धारण नहीं कर सकती हैं।
ज्योतिषीय दृष्टि से छठ का महत्व
ज्योतिषीय और वैज्ञानिक दृष्टि से भी छठ पर्व का खास महत्व है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि एक विशेष खगोलीय अवसर है, जिस समय सूर्य धरती के दक्षिणी गोलार्ध में स्थित होता है। इस समय सूर्य की पराबैंगनी किरणें पृथ्वी पर सामान्य हो जाती है। इन हानिकारक किरणों का सीधा प्रभाव आंख, पेट और त्वचा पर पड़ता है। छठ पर्व पर सूर्य देव की आराधना और अर्घ्य देने से पराबैंगनी किरणें मनुष्य को हानि न पहुंचा पाएं, इस वजह से सूर्य पूजा के महत्व में वृद्धि हो जाती है।
छठ पूजा का महत्व
छठ पूजा हिन्दुओं का प्रमुख त्यौहार है जो मुख्य रूप से बिहारवासियों द्वारा मनाया जाता है। यह पर्व मुख्यतौर पर दिवाली उत्सव के 6 दिन बाद आता है। छठ पूजा का लोकपर्व अब महापर्व का रूप ले चुका है क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में छठ पूजा को एक विशेष पहचान प्राप्त हुई है। इस त्यौहार को बिहार के अतिरिक्त उत्तर प्रदेश, पूर्वांचल, झारखण्ड और नेपाल के कई हिस्सों में मनाया जाने लगा है।
यही कारण है कि अब छठ पूजा की रौनक बिहार-झारखंड के अलावा देश के अन्य भागों में भी दिखाई देती है।छठ पूजा भगवान सूर्य को समर्पित होता है और इस दौरान भगवान सूर्य की पूजा बेहद ईमानदारी, श्रद्धाभाव और निष्ठा के साथ की जाती है। इस पूजा को वर्ष में दो बार किया जाता है, अर्थात एक बार ग्रीष्म ऋतु में और दूसरी बार शरद ऋतु के दौरान। षष्ठी तिथि के दिन इस पूजा को किया जाता है, इसलिए इस त्यौहार को ‘छठ पूजाÓ का नाम दिया गया है।
‘छठÓ का अर्थ है ‘छठा दिनÓ और पंचांग के अनुसार, पहली बार छठ पूजा को चैत्र महीने के दौरान होली के बाद छठे दिन मनाया जाता है। इस छठ पूजा को चैती छठ और सूर्य पूजा कहा जाता है।
छठ पूजा का धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व
धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से छठ पूजा आस्था का लोकपर्व है। हिन्दुओं के समस्त त्यौहारों में से छठ पूजा एक मात्र ऐसा त्यौहार है जिसमें सूर्य देव की पूजा करके उन्हें अर्घ्य दिया जाता है। सनातन धर्म में सूर्य की आराधना का अत्यंत महत्व है।
सभी देवी-देवताओं में भगवान सूर्य ही ऐसे देवता हैं जो अपने भक्तों को प्रत्यक्ष दर्शन देते है। वेदों में सूर्य देव को जगत की आत्मा कहा गया है। सूर्य के शुभ प्रभाव से मनुष्य को तेज, आरोग्यता और आत्मविश्वास की प्राप्ति होती है। सूर्य के प्रकाश में अनेक रोगों को नष्ट करने की क्षमता होती है। वैदिक ज्योतिष में सूर्य ग्रह को आत्मा, पिता, पूर्वज, सम्मान और उच्च सरकारी सेवा का कारक कहा गया है। छठ पूजा पर सूर्य देव तथा छठी माता की पूजा से व्यक्ति को संतान, सुख और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
सांस्कृतिक रूप से छठ पर्व की सबसे बड़ी विशेषता यही है इस पर्व को सादगी, पवित्रता और प्रकृति के प्रति प्रेम।