गन्ना, धान, गेहूं से अधिक फायदेमंद है किसानों के लिए यह फसल, करें खेती
नई दिल्ली : व्रत रखने वाला शायद ही कोई कुट्टु के आंटे से अंजान होगा। आज हम आपको कुट्टु की खेती के बारे में आपको बताने जा रहे हैं, जो अपने गुणों की वजह से लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हो चुका है. इन्हें डाइट में शामिल करने से कई सारे फायदे मिलते हैं. कुट्टू (Kuttu) इन्हीं में से एक है जिसमें धान, गेहूं से भी अधिक पोषक तत्व की मात्रा होती है. कुट्टू को सेहत के लिहाज से बहुत फायदेमंद माना जाता है. कुट्टू के आटे में प्रोटीन, फाइबर, मैग्नीशियम, विटामिन-बी, आयरन, फोलेट, कैल्शियम, जिंक, मैग्नीज, कॉपर और फॉस्फोरस जैसे पोषक तत्व पाए जाते हैं. पोषक तत्वों से भरपूर मिलेट्स खाने के कई समस्याओं से राहत मिलती हैं. ऐसे में कुट्टू (Buckwheat) की खेती किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है.
पोषण से भरपूर कुट्टू
कुट्टू की गिनती फल में होती है. बकव्हीट (Buckwheat) पौधे से निकलने वाले फल तिकोने आकार के होते हैं, जिसे पीसकर आटा तैयार किया जाता है. इसे व्रत के दौरान खाया जाता है. इसके तने का उपयोग सब्जी बनाने, फूल और हरी पत्तियों का उपयोग ग्लूकोसाइड के निष्कासन द्वारा दवा बनाने, फूल का इस्तेमाल हाई क्वालिटी वाले मधु बनाने और बीज का उपयोग नूडल, सूप, चाय, ग्लूटेन फ्री बीयर आदि बनाने में किया जाता है. इसमें पोषण तत्व की मात्रा धान, गेहूं से भी ज्यादा होती है. इसकी पर्वतीय क्षेत्रों पर सफलतापूर्वक खेती की जा सकती है. यह ग्लूटेन फ्री आहार है, जिसकी वजह से सिलिएक रोगियों के लिए यह एक बेहतर विकल्प माना जाता है. यह फसल हरी खाद के रूप में भी काम में आती है. इसका उपयोग उस जमीन में करते हैं, जो रबी सीजन (Rabi Season) में देरी से सूखती है और जहां लंबे समय के बाद खेती करनी है.
कुट्टू की किस्में
किसानों को कुट्टू की उन्नत किस्मों की खेती करनी चाहिए ताकि वो कम मेहनत और कम समय में ज्यादा से ज्यादा मुनाफा पा सकें. इसकी उन्नत किस्मों में- हिमप्रिया, हिमगिरी, सांगलाबी1, भी.एल.7, पीआर ‘बी’, हिम फाफर, शिमला ‘बी’ शामिल हैं. रूस में इसकी खेती व्यापक पैमाने पर होती है. इसकी जंगली प्रजाति यूनान में भी पाई जाती है.
बुआई का सही समय
कुट्टू (Kuttu) रबी फसल है. इसकी बुआई 15 सितंबर से 15 अक्टूबर तक कर सकते हैं. बीज की मात्रा कुट्टू की किस्म पर निर्भर करती है. स्कूलेन्टम के लिए जहां 75-80 किग्रा प्रति हेक्टेयर बीज की जरूरत पड़ेगी वहीं टाटारीकम प्रजाति के लिए 40-50 किग्रा प्रति हेक्टेयर की मात्रा पर्याप्त होगी. कुट्टू के बीजों को छिड़काव विधि से बोते हैं और बुआई के बाद हल पाटा चलाकर बीजों को ढक दिया जाता है.
खाद और सिंचाई
आईसीएआर के मुताबिक, कुट्टू की फसल में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश को 40:20:20 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से डालने से पैदावार अच्छी मिलती है. इसको 5 से 6 सिंचाई की जरूरत होती है.
खरपतवार और कीट नियंत्रण
संकती पत्ती के लिए 3.3 लीटर पेन्डीमेथिलीन का 800-1000 लीटर पानी मे घोल बनाकर बुआई के 30-35 दिनों बाद छिड़काव करना चाहिए. कुट्टू की फसल में कीटों और रोगों का कोई प्रकोप नहीं देखा गया है. इसीलिए इसकी खेती में किसानों पर कीटनाशक का बोझ नहीं पड़ता.
कटाई और पैदावार
कु्ट्टू (Kuttu) की फसल एक साथ नहीं पकती. इसलिए इसे 70-80 फीसदी पकने पर काट लिया जाता है. इसकी दूसरी वजह यह भी है कि कुट्टू की फसल में बीजों के झड़ने की समस्या ज्यादा होती है. कटाई के बाद फसल का गट्ठर बनाकर, इसे सुखाने के बाद गहाई करनी चाहिए. कुट्टू की औसत पैदावार 11-13 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है.